ढलती उम्र –
काव्य गीत सर्जन —
ढलती उम्र —
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मनुज उमरिया ढलती जाती, सुख-दुख कर्मों का पाला है।
हँस-लो गा-लो मौज मना लो,पियो प्रेम का प्याला है।।
इस जगत की रीत है फानी, प्रभु सबका रखवाला है।।
हँस-लो गा-लो मौज मना लो, पियो प्रेम का प्याला है।।
मन के हारे हार हुई है, मन के जीते जीत मना।
आज अभी अरु अब में जीना, सरगम से संगीत बना।
नगमों की बारात सजाओ, जीवन मिला निराला है।।
हँस-लो गा-लो मौज मना लो,पियो प्रेम का प्याला है।।
जियो जिंदगी जी भर प्यारे, खोल दिलों के धारे हैं।
त्याग मोह के धागे प्यारे, प्रभु सभी के सहारे है।।
चिंता से क्या होगा साथी, कर्म-धर्म जब ताला है।
हँस-लो गा-लो मौज मना लो, पियो प्रेम का प्याला है।।
मद यौवन में झूला प्राणी, जग परवाह नहीं करता।
मधुर रसीला गदराया तन, आज झुर्रियों से भरता।।
चाँदी झलकें जब बालों में,खाओ सबर निवाला है।
हँस-लो गा-लो मौज मना लो,पियो प्रेम का प्याला है।।
बीत गई यूँ भरी जवानी, लगे बसंत जैसे चहका।
नाती,पोते अरु बहुओं की, खुशियों से आँगन महका।
साँसों के तारों पर गूँजी, अब राम नाम की माला है।
हँस-लो गा-लो मौज मना लो,पियो प्रेम का प्याला है।।
✍️ सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।