ढंग तुममे कछु दीन के नईआ, खटिया पे तुम पड़े रहो
धोती कुर्ता काय भूल रई काय पहन रई टाप।
अधनंगी तुम काय फिरत हो काय लजा रई बाप।।
तुम्हे सरमई ने आ रई ,काय जा नाक कटा रई…..
टाप पहन कर लगा के चश्मा ब्यूटीपार्लर जाती हो।
बता करिश्में हंस हंस चलती,खुद ही खुद इतराती हो ।।
हुस्न जो किसे बता रई,काय जा नाक कटा रई…..
नई होटल में खाना खाकर वियर बार खो जाती हो।
सखा सहेली संग ले जाती सब खो नांच नचाती हो।।
काय मां बाप लजा रई,काय जा नाक कटा रई…..
“कृष्णा”पगला” है समझा रआे काय बात ने मानो तुम।
समझ जाओ अब तुम जल्दीसे अपनों खो पहचानो तुम।।
काय तुम धौंस बता रई,काय जा नाक कटा रई…..
✍️कृष्णकांत गुर्जर