ढंग जीवन के (गीतिका)
ढंग जीवन के
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ढंग जीवन के बदलते जा रहे।
व्यक्ति को बाजार छलते जा रहे।
भागने में वक्त बीता जा रहा।
कुछ ठगे से हाथ मलते जा रहे।
बुझ रहे हैं दीप कुछ तूफान में।
हैं मगर कुछ शेष जलते जा रहे।
हर तरीका और शैली स्वार्थ की।
लोग अपनाते हैं चलते जा रहे।
हर किसी की तर्ज अपनी है यहां।
राग में हैं शब्द ढलते जा रहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)