डोर आस्था की
डोर आस्था की
आज हृदय के तार बजे हैं
गुणगान तेरा ही करता हूं
मन वीणा के सुर आज सजे हैं
गीत तेरे ही गाता हूं
हे पुरुषोत्तम हे रघुवर मेरे
एक साथ मुझे बस तेरा है
जब से तेरी लगन लगी है
नाम तेरा ही जपता हूं
डोर आस्था की बंधी हुई है
मेरी तो प्रभु राम से
वही बचाता है मुझको
हर गलत काम से
पग पग मुझको तो अपने
रघुराई का सहारा है
दुनिया तो चलती है मेरी
बस प्रभु तेरे नाम से
इति।
इन्जी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश।
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