डॉ0 रामबली मिश्रबली मिश्र के दोहे
मई दिवस के उपलक्ष्य में डॉ0 रामबली मिश्र के कतिपय दोहे
मई दिवस पावन बने,हो सबमें उल्लास।
गर्मी भी शीतल लगे,रचे दिव्य इतिहास।।
सच्चाई का जो सदा,करता है व्यापार।
सकल विश्व से हर समय,जुड़ते उसके तार।।
निंदा ईर्ष्या त्याग कर,जो करता हरि गान।
उसके आगे तुच्छ हैं,सारे लौकिक ज्ञान।।
मानवता को त्याग कर,कौन बना इंसान?
गली गली में दानवों,के है अमिट निशान।।
अगर पाप से मुक्ति का,तुझे चाहिए द्वार।
पावन शुद्ध विचार का,करो सदा सत्कार।।
जो पा कर अधिकार का,करता गलत प्रयोग।
वही अनैतिक अधम अति,मन में दूषित रोग।।
पाक साफ इंसानियत,में बसता है प्यार।
गंदे कूड़ेदान में,है बदबू भरमार।।
वह अमृत का मधु कलश,जिसमें प्यार अपार।
करता सारे लोक का,भावों से सत्कार।।
आशिक बनना धर्म का,बहुत दिव्य है कर्म।
शुभ भावों की आशिकी,परम अलौकिक मर्म।।
सच्चा प्रेमी है वही,जिसमें कहीं न स्वार्थ।
करता सारे कर्म है,वह तो मात्र परार्थ।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।