डॉ. कीर्ति काले जी
डॉ.कीर्तिकाले दीदी जी
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सदा साहस बढ़ाती है,
कभी न जग से हारी है।
सृजन साहित्य में जिसने,
जनम भर तन मन वारी है।
ओज श्रृंगार छंदों में,
परम पहचान है जिनकी।
आज कीर्तिकाले दीदी,
कला कौशल पधारी है।
नेह वात्सल्य ममता में,
पुण्य शुभ बन कल्याणी है।
देश भक्ति के राहों में,
प्रखर ओजस्वी वाणी है।
जहाँ पढ़ती है मंचो पर,
हमें आभास होता है।
परम कीर्तिकाले जी की,
कंठ में वीणापाणी है।
★★★★★★★★★
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”✍️