*स्पंदन को वंदन*
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
*स्पंदन को वंदन *
स्पंदन का जिसके जीवन में जरा सा भी अभाव रहेगा ।
मित्र सखी दोस्त सखा सहेली उस से दूर रहेगा ।
छु नहीं सकता जो कोमल भावों से एहसास किसी के ।
ऐसा मानव तो रे प्राणी राहू केतु के अगल बगल रहेगा ।
मैंने कब कहा के तुमसे कि मुझे तुमसे प्यार नहीं है ।
अब गुफ्तगू हुये कई अरसा हुआ तू कुसूरवार नहीं है ।
कमला विमला शिमला स्वीटी खरी खोटी सुनाती हैं ।
तो सुनाती रहेंगी , बहुत बुरी आदत है उनकी ये मज़ाक की ।
चलो फिर से उड़ने की कोशिश करेंगे चलो हाँथ पकड़ लो ।
देखो देखो , देखो तो जरा हाँथ पकड़ते ही हम उड़ने लगें हैं ।
एकता की गरिमा और शक्ति का अजब अज़ाब है दोस्तों ।
तेरे हाँथ में मेरे हाँथ का कितना प्यार हिसाब है दोस्तों ।
स्पंदन का जिसके जीवन में जरा सा भी अभाव रहेगा ।
मित्र सखी दोस्त सखा सहेली उस से दूर रहेगा ।
छु नहीं सकता जो कोमल भावों से एहसास किसी के ।
ऐसा मानव तो रे प्राणी राहू केतु के अगल बगल रहेगा ।
शनिवार को शनि महाराज को चड़ाने हम निकले तेल लेने ।
रास्ता बिल्ली ने काटा पलटे रास्ते से ही खुद ही फंस गए बीच झमेले ।
अब साहिब जी देखिए गाँव का गाँव है पुराने खयालात का ।
हम एक अकेले ही तो नहीं बौड़म इन बातों पे भरोसा करने वाले ।