डॉक्टर
बचपन में देखा एक सपना,
मैं भी डॉक्टर बन जाऊँ।
जीवन रक्षक दूत बनूँ मैं,
बीमारी सब हर जाऊँ।
सेवा ही हो धर्म हमारा,
ऐसा लक्ष्य बनाऊं मैं।
कठिन पढ़ाई कितनी भी हो,
खुद को रक्ष्य बनाऊं मैं।
नियति ने ऐसा चक्र चलाया,
बना दिया अध्यापक।
धरती का दूजा भगवान,
बन न सकी मैं रक्षक।
क्या सोचा था ! दूँगी दवा मैं,
अब मैं दुवाएं देती हूँ।
डॉक्टर ना बन सकी तो क्या,
मैं सबकी बलाएं लेती हूँ।
दुःख निवारण कर ना सकूँ,
पर दुःख का कारण बनूं नही।
डॉक्टर का तमगा ना पहना
पर कष्ट अकारण बनूँ नही।
बीमारों की सेवा करती,
करती नेक मैं काम।
डॉक्टर ना बनी सकी तो क्या,
पर हूँ अच्छी इंसान।
मन में होती सहानुभूति,
दिल में होता है प्यार।
डॉक्टर जैसी सलाह देती,
जो मिले कोई बीमार।
डॉक्टर बिन है जीवन सूना,
डॉक्टर हैं आधार।
बीमारी ने है समझाया,
सेवा भाव का सार।।
काश मैं भी डॉक्टर बन पाती,
करती पूरा सपना।
सेवाभाव के धर्म से मैं तो,
सबको बनाती अपना।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️