*डॉक्टर चंद्रप्रकाश सक्सेना कुमुद जी*
डॉक्टर चंद्रप्रकाश सक्सेना कुमुद जी
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पुराने कागजों को उलटते-पुलटते समय डॉक्टर चंद्र प्रकाश सक्सेना कुमुद जी का एक प्यारा – सा पत्र मिला। पढ़कर स्मृतियाँ सजीव हो उठीं। ऐसी सहृदयता तथा आत्मीयता रखने वाले व्यक्ति संसार में कम ही होते हैं । कक्षा 11 और 12 में मैंने उनसे हिंदी पढ़ी थी । वह हमारे विद्यालय सुंदर लाल इंटर कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता थे। कवि ,लेखक उच्च कोटि के थे। अपनी कक्षा में वह गहराइयों में डूब कर विषय पर हम सबको पढ़ाया करते थे । अनेक बार विषय को विस्तार देने के लिए वह औपचारिकताओं से आगे बढ़ जाते थे और हिंदी तथा उर्दू की शेर – शायरी में उलझ जाते थे । उन्हें अनेक बार इस बात का भी एहसास नहीं रहता था कि वह विषय से कितना आगे भावनाओं की गहराइयों में तैरते हुए चले जा रहे हैं । हम लोग मंत्रमुग्ध होकर उनके विचारों को सुनते थे और अपने भाग्य को सराहते थे कि हमें इतना उच्च कोटि का साहित्यकार इंटर की कक्षाओं में अध्यापक के रूप में उपलब्ध हुआ है ।
वह ईमानदार , सच्चरित्र तथा सहृदय व्यक्ति थे । सज्जनता उनके रोम – रोम में बसी थी । एक आदर्श शिक्षक की जो परिकल्पना हम करते हैं ,वह सारे गुण उनके भीतर थे। योग्यता, कर्तव्य – निष्ठा ,समय का अनुशासन और सब विद्यार्थियों के साथ में समानता का व्यवहार करते हुए उनको विषय में पारंगत करना, यह डॉ चंद्र प्रकाश सक्सेना जी की विशेषता थी। मुझ पर उनका विशेष स्नेह रहा ।
जब 1993 में मेरा काव्य संग्रह माँ प्रकाशित हुआ ,तब पुस्तक को हाथ में लेते ही उन्होंने कहा कि माँ शब्द पर चंद्रबिंदु का न होना अखर रहा है ।यह जो दोष को इंगित करने की प्रवृत्ति सुधार की दृष्टि से रहती है, वह केवल माता पिता और गुरु की ही हो सकती है । चंद्र प्रकाश जी मेरे शुभचिंतक थे तथा उन्होंने सुधार की दृष्टि से ही मेरे दोष को मुझे बताया था । प्रत्येक गुरु चाहता है कि उसका शिष्य अपनी कला का प्रदर्शन निर्दोष रूप से संसार में किया करे । उनकी यही मंगल कामना उस समय प्रकट हो रही थी । फिर बाद में जब मैंने माँ पुस्तक का दूसरा भाग प्रकाशित किया, तब उस गलती को सुधारा।
आपका पत्र इस प्रकार है :-
दिनांकः 23-8-2013
प्रिय श्री रवि प्रकाश जी
आपकी निर्बाध साहित्य – साधना से तो मुझे प्रसन्नता मिलती ही रही है और आराध्या माँ सरस्वती से मन ही मन सतत निवेदन भी रहा है कि वह आपके लेखकीय कृत्य को अनवरत संबल प्रदान करती रहे । पर इस समय मेरी उल्लासमय अनुभूति का महत् कारण यह सुखद समाचार है कि आपके दोनों पुत्र प्रगति के उच्च शिखर पर पहुँच रहे हैं । यह समाचार मुझे श्री प्रदीप ,जिनका सिविल लाइंस पर कपड़े का व्यापार है ,से मिला है । अक्सर उनसे भेंट हो जाती है। हाल-चाल मिलते हैं। दोनों बच्चों को मेरा शुभाशीर्वाद चाहिएगा । सच में ,मैं बहुत प्रसन्न हूँ।
शुभाकांक्षी
चंद्र प्रकाश सक्सेना
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ऐसी आत्मीयता तथा पारिवारिकता दुर्लभ ही कही जा सकती है। उस समय तक चंद्र प्रकाश जी विद्यालय में प्रधानाचार्य पद से रिटायर हो चुके थे । उनके हृदय में मेरी व्यक्तिगत तथा पारिवारिक उन्नति के साथ अपनत्व का भाव आज भी मुझे कहीं न कहीं उनकी स्मृति में मधुरता से जोड़ रहा है।
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मेरे विवाह के अवसर पर 13 जुलाई 1983 को चंद्र प्रकाश जी ने एक मंगल गीत (सेहरा) लिखा था और उसे समारोह में पढ़कर सुनाया था ।गीत की भाषा संस्कृत निष्ठ है ,सरल है, सबकी समझ में आने वाली है । शब्दों का चयन अत्यंत सुंदर तथा लय मधुर है । यह एक व्यक्तिगत और पारिवारिक स्मृति तो है ही ,साथ ही चंद्र प्रकाश जी के काव्य कला कौशल का एक बेहतरीन नमूना भी कहा जा सकता है ।
विवाह गीत( सेहरा ) इस प्रकार है :-
विवाह गीत(सेहरा)
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आज दिशाएँ मृदु मुस्कानों की विभूति ले मचल रही हैं
विश्व पुलक से दीप्त रश्मियाँ पद्मकोश पर बिछल रही हैं
या फिर युगल “राम “ की उजली “माया” ने नवलोक बसाया
हर्षित मन सुरबालाओं ने हेम – कुंभ ले रस बरसाया
सहज रूप से अंतरिक्ष ने धरती का सिंगार किया है
तन्मय उर “महेंद्र” ने मानों अपना सब कुछ वार दिया है
मन की निधियों के द्वारे पर अभिलाषा को भाव मिले हैं
मधुर कामना की वीणा को अनगिनत स्वर मधु – राग मिले हैं
” रवि ” – किरणों के संस्पर्श से विलसित ” मंजुल ” मानस शतदल
राग गंध मधु से बेसुध हो ,नृत्य मग्न हैं भौंरों के दल
जगती की कोमल पलकों पर ,विचर रहे जो मादक सपने
“मंजुल-रवि” की रूप -विभा में ,आँक रहे अनुपम सुख अपने
सुमनों के मिस विहँस रहा है ,सुषमा से पूरित जग-कानन
मत्त पंछियों के कलरव-सा ,मुखरित आशा का स्वर पावन
साधों के मधु – गीत अधर पर ,सरस कल्पना पुलकित मन में
मन से मन का मिलन अमर हो ,मलय बयार बहे जीवन में
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अंत में डॉक्टर चंद्रप्रकाश सक्सेना कुमुद जी की पावन स्मृति को प्रणाम करता हूँ।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451