डूब जाते हैं घराने
डूब जाते हैं घराने (ग़ज़ल)
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राम के रंग राम जाने,
ढूंढ़ते इंसान बस बहाने।
आहटें जानती पथिक को,
ठीक लगते सभी निशाने।
देख कर झाँकते बगल से,
हैं मिलाते नज़र दिवाने।
प्यार में पस्त जिंदगी है,
हैं बहुत दूर सब ठिकाने।
बेवफा यार जान सीरत,
डूब जाते बड़े घराने।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)