डूबते भरोसे
अवसरवादी मतलबी समाज मे
सहज भरोसे के पुल
भरोसेमंद नहीं होते ,
इसीलिये ये आकस्मिक निर्माण
विश्वासघात की बाढ़ में
बह ही जाते हैं बहुत बार
साथ ही डूब जाता है भरोसे का पथिक
दूरियाँ पहले से भी बड़ी हो जाती हैं ,
पर भरोसे के साथ एक बड़ी दिक़्क़त है
इसे ठोक बजा कर करना कठिन है
बर्तन ख़रीदे जाते है ऐसे
और भरोसा करना ख़रीदने जैसा नहीं होता
लेकिन भरोसा करने वाले मानते कहाँ हैं !
उम्मीदों से भरे ये पागल ,
बहते पुल के कष्ट से जल्दी ही उबर जाते हैं
फिर भरोसा करते है
फिर से बह जाते हैं
और अंततः डूब जाते हैं !