डूबता सुरज हूँ मैं
डूबता सुरज हूँ मैं या टूटा हुआ ख्वाब हूँ मैं
बंद कमरे में अकेला जलता हुआ चिराग हूँ मैं
महफिलों में हंसता रहा सांसों में बसता रहा
लबलबाते जाम से बस छलकी हुई शराब हूँ मैं
सुनो जिंदगी एक गीत है खो चुकी संगीत है
शाम की तन्हाई में यूँ ही एक तड़पता राग हूँ मैं
मौत से कहीं दूर हूँ मैं जीने को मजबूर हूँ मैं
जिंदगी को जला डाला खुद दहकती आग हूँ मै
खुद को जो खामोश पाया तो मुझे ये होश आया
उसने लगाया दाम लेकिन अब तलक बेदाग हूँ मैं
वक्त ने मुझको सिखाया फर्ज का ये फलस्फा
बिखरी हुई जिंदगी का सिमटा हुआ आगाज हूँ मै
सुन लो तुम्हारे सामने है “V9द” की ये दास्तां
अपनों की खुशी में खुशी सच्च में एक बैराग हूँ मैं
स्वरचित
V9द चौहान