डाला है लावा उसने कुछ ऐसा ज़बान से
ग़ज़ल
डाला है लावा उसने कुछ ऐसा ज़बान से
बहने लगा है ख़ून मेरे दोनों कान से
मैं हूँ ज़मीं पे गिर गया तो उठ भी जाऊँगा
कैसे बचेगा तू जो गिरा आसमान से
कुछ सब्र भी करो कि नतीज़ा भी आएगा
क्यों अपनी जीत मान रहे हो रुझान से
तेरे दिलो दिमाग में कुछ है जो सड़ रहा
आती है मुझको बदबू तेरे इत्रदान से
उसने ‘अनीस’ काट दिया है वही दरख़्त
साये में जिसके बैठ गया था थकान से
अनीस शाह ‘अनीस’