*डायरी लेखन*
09 जून,2022
शाम 4:05 मिनट
अम्बाला।
प्रिय सखी डायरी
देख आज फिर से तेरी याद आ ही गई। कभी-कभी डायरी लेखन करने वाले के साथ तो ऐसा ही होता है।वैसे भी जो इन्सान सारा दिन बोलता रहता हो तो वो सब कुछ तो कह जाता है।हृदय में कोई बात नहीं रखता तो लिखे भी क्या?
खैर.. आज का दिन भागम-भाग भरा नहीं था क्योंकि आज से सभी की गर्मियों की छुट्टियाँ शुरु हो गई हैं तो थोड़ा लेट ही उठी थी।सुबह की चाय पर सासू माँ ने सुझाव दिया कि आज “लांलां वाले पीर”जो जड़ोत में अंबाला से कुछ ही दूरी पर है माथा टेकने जाया जाए। दोपहर बाद जाने का प्रोग्राम बना। जल्दी-जल्दी प्रसाद के लिए चूरी बनाकर अपनी गाड़ी में सपरिवार वहाँ जाने के लिए तैयार हो गए। वहाँ भीड़ भी अधिक नहीं थी इसलिए दर्शन भी अच्छे हुए। परंतु मैं वहाँ का दृश्य देखकर बड़ी आश्चर्यचकित सी हुई।वहाँ चारों ओर पैरों के आस-पास ही चूरी प्रसाद के ढेर लगे हुए थे। गेहूँ,प्याज पैरों में बिखरे हुए थे। सासू माँ ने सभी जगह चूरी प्रसाद चढ़ाने के लिए कहा परंतु मैं उनसे सहमत ना थी इसलिए मैंने कहा कि बाकी प्रसाद घर जाकर पड़ोस में बाँट देंगे। यहाँ जगह-जगह फेंकने का भी कोई फायदा नहीं है।
आस्था के नाम पर ऐसे अन्न को बर्बाद होते देखकर मेरा मन बहुत दुखी हुआ।पर कर भी क्या सकती थी? खुद को तो इन्सान सुधार सकता है परंतु ऐसी आस्था वाली जगह पर किसी से पंगा लेना ठीक ना लगा। इसीलिए मन
मसोसकर वहाँ से आ गई।आज बहुत दिनों बाद आज मुझे भी डायरी लिख कर बहुत अच्छा लग रहा है।मन को सुकून सा मिल रहा है कि कहीं ना कहीं मैंने खुद बनाए प्रसाद को तो बर्बाद होने से बचा लिया। अन्न का एक-एक दाना अगर किसी के मुँह में जाए तो ही अच्छा है।चूँकि आज मेरा बृहस्पतिवार का व्रत है तो पहले व्रत खोलने के लिए कुछ बना लूँ ।अभी के लिए
अलविदा मेरी प्रिय सखी…..