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12 Jan 2020 · 1 min read

डर

क्यों डरने लगा हूँ,
लिखने से
हिचकने लगा हूँ,
बोलने से
सत्य के प्रकटन से,
क्या डर है
कोई सगा दूर होने लगेगा
लिखने से,
कुछ बोलने से
यह चुप्पी क्या मृत्यु जैसी नहीं ?
आदमी कहाँ सोच पाता,
कहाँ बोल पाता है
काल के गाल में समाने के बाद ।
और जो न सोचता है,
न बोलता है
चुप चाप सहता है,
वह जिंदा कहाँ
वह तो धीरे धीरे मरने लगता है
और अंततः
समा जाता है
काल के गाल में
बिना अपनी,
स्मृतियों को सहेजे।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 293 Views
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