डर
आंसू से डरते रहे आँखे रहीं भरी
आने से पहले ही मुस्कुराहट चली गई
रातों से डरते रहे शबनम नहीं मिली
उपवन से फूलों से सजावट चली गई
पतझड़ से डरते रहे पेड़ों से रहे दूर
पत्तों की जीवन से सरसराहट चली गई
धूप से डरते रहे बादल तले जिए
अनजाने ही रिश्तों की गर्माहट चली गई
रोने से डरते रहे कुछ कहा नहीं खुलकर
होंठो से जाने क्यों खिलखिलाहट चली गई
मौत से डरते रहे ज़िंदगी निकल गई
खुशियों की आंगन से आहट चली गई