डर
27• डर
आज जंगल उस पार डेरापुर में नेता जी का भाषण था। पार्टी के लोग बुधिराम के गाँव परसुपुर कल आए थे ।अब 15 मील जाने के लिए सरकारी बस तो चलती थी लेकिन वह शाम 7 बजे बंद होकर वापस डिपो चली जाती थी ।हालांकि नेता जी के आने का समय तो सायं 4 बजे का था, लेकिन नेता जी का क्या! व्यस्त लोग होते हैं और समय से आना कम ही हो पाता है ।इसलिए बुधिराम ने अपनी मोटर साईकिल से ही जाना तय किया ।सोचा कि डेरापुर में तेल और हवा गाड़ी में भर जाएगी । ऐन वक्त पर हेलमेट लेकर जब चलने को तैयार हुआ तो उसी की उम्र के 20-22 के दो पड़ोसी लड़के भी साथ चलने की जिद कर बैठे।लाख कोशिश की उसने कि रास्ता खराब है, तीन सवारी ठीक नहीं, कोई एक साथ चले चलो, लेकिन दोनों में से कोई भी अलग से जाने को तैयार नहीं हुआ।अंततः तीनों मोटर साईकिल से डेरापुर चल पड़े ।
उधर नेता जी को बगल के गाँवों में खातिर-बात में देर हो गई और डेरापुर कहीं साढ़े पांच बजे के बाद ही पहुँच पाए।ठंडी का समय था ।अंधेरा छा गया ।भाषण के बाद तीनों दोस्तों की वापसी शाम 8 बजे के बाद ही संभव हो पाई। रास्ते में जंगल के बीच की सड़क पार करते समय एकदम घुप्प अंधेरा था ।ये तो कहिए मोटर साईकिल की बैटरी नई थी और हेडलाइट की रोशनी तेज़ थी। हेलमेट लगाए गाड़ी चलाते बुधिराम आगे और साँय-साँय करती ठंडी हवा से बचते पीछे दुबके बैठे उसके दोनों साथी तेज़ चले जा रहे थे कि अचानक एक हादसा हो गया ।
अंधेरी सड़क पर सामने यमराज के दर्शन हो गए।वापसी में न जाने जंगल के किस कोने से शेर और शेरनी आकर सड़क के बीचो-बीच बैठ गए थे ।मोटर साईकिल की हेडलाइट जैसे ही उनके ऊपर पड़ी,वे फुर्ती से उठ खड़े हुए और हमले की मुद्रा में आ गए। इधर चालक बुधिराम के तो उनकी गर्जना सुनकर होश ही उड़ गए ।वह इतना डर गया कि मोटर साईकिल सीधे भगाने के बजाय उसके हाथों से हैंडल ही छूट गया ।गाड़ी सड़क पर सरकती हुई पास ही लुढ़क गई ।उधर मौका पाते ही हिंसक जानवरों ने तुरंत हमला कर दिया ।दोनों पीछे बैठे सवारों की तो तुरंत ही मृत्यु हो गई । शेरनी शिकार में व्यस्त हो गई । लेकिन शेर फिर फुर्ती से उछला और इसबार उसने बुधिराम का सिर हेलमेट के साथ ही जबड़े से पकड़ लिया ।चंद पलों में ही जब उसे धातु निर्मित हेलमेट कुछ अटपटा-सा लगा तो बुधिराम को एकदम से छोड़ दिया ।बुधिराम की बुद्धि अभी सोलहो आने सही थी। इससे पहले कि शेर दुबारा किसी और दिशा से पकड़ पाता, वह तेजी से भागकर पास के एक बड़े पेड़ पर चढ़ गया और वहीं काफी ऊपर बैठे नीचे क्रोधित शेर की भयानक दहाड़ पूरी रात सुनता हुआ ईश्वर से प्रार्थना करता रहा ।रात बीती तो वन विभाग के कर्मचारियों के साथ उन्हें ढूंढते हुए गाँव के लोग पहुंचे और रोते-बिलखते जीवित बचे बुधिराम को गाड़ी से गाँव ले गए
काश! बुधिराम बिना डरे-घबराए गाड़ी भगा ले गया होता तो दो जानें और बच गई होतीं । तभी कहते हैं, डरना ही मृत्यु है । जो डर गया, सो मर गया ।
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—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित,19/07/2021•