डर
वे डरते हैं।
वे डरते हैं अमन से,
एकता से, भाईचारे से..
विद्यार्थियों से, विद्वानों से,
शिक्षाविदों से..
अधिकारों के लिए उठती हुई आवाज़ों से..
अमन चैन के पैरोकारों से,
शिक्षा से, मार्क्सवाद से
गांधी, अम्बेडकर, लेनिन के पुतलों से..
यहां तक कि स्वतंत्र लेखन की अभिव्यक्ति से भी,
तभी तो पत्रकार चीख चीख कर परोसते हैं,
झूठ, उन्मांद, नफरत..
और अखबार,
जो रह गए हैं बस;
अलमारियों में बिछाने भर…