डर लगता है
इस नयी बदलती दुनिया में अब डर लगता है
किससे कैसे किस तरह बात करूं डर लगता है,
सब कहते मै उसके जैसा न हो पाया अब तक
फिर क्यूँ सबको आपस मे सबसे डर लगता है,
हर तल्खी पर कोई और नहीं सब अपने होते हैं
हर रिश्ते के खो जाने का अब डर लगता है,
पहले कैसे गाँव में बैठ कर बूढ़े सुलझाते थे मसले
अब कोर्ट कचहरी भी जाने से सबको डर लगता है,
सब रिश्ते बस टिके हुए कुछ बूढ़े और बुजुर्गों पर
नए जमाने की पीढ़ी से अब हमको डर लगता है,
रिश्ते सब ही निभा रहे बस मोबाइल की सेवाओं से
शायद सबको अब मिलने जुलने से डर लगता है,
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निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 07 अप्रैल, 2017