डर को बनाया है हथियार।
यहां पे हर मज़हब की पहचान मुख्तलिफ है।
किसी की अ किसी की A किसी की अलिफ है।।1।।
यूं तो बड़ा ही आसान है सुनकर के बताना।
आवाजे घंटी हिंदू है तो आती आज़ाने मुस्लिम है।।2।।
जाति धरम में बंट गए है बस सारे ही गरीब।
पर दौलतमंदो की सजी यहां एक सी महफिल हैं।।3।।
औलाद होते हुए भी बे औलादों से जी रहें हैं।
देखो उनकी ज़िन्दगी बन गई बड़ी ही मुफ्लिस है।।4।।
चेहरे पर चेहरे लगे है सारे ही अपने लगते है।
किसको गुनहगार मानें हमें हुई बड़ी मुश्किल है।।5।।
डर को बनाया है हथियार निजाम की खातिर।
जानकर भी सब हालते वतन से यहां गाफिल है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ