Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Oct 2020 · 2 min read

डर के आगे जीत

डर के आगे जीत
**********************
यह सही है कि कोरोना संकट के बीच स्कूलों का खुलना डरा रहा है।परंतु थोड़ी तसल्ली भी है कि जूनियर सेक्शन को अभी इससे अलग ही रखा गया है। नौवीं से लेकर ऊपर तक की कक्षाओं को कड़े नियमों के अनुसार तमाम पाबंदियों के साथ पचास फीसदी बच्चों को ही अनुमति के साथ विद्यालय खोलने की इजाजत दी गई।थर्मल स्क्रीनिंग, मास्क,सेनेटाइजर, दो गज दूरी जैसी सख्त हिदायतें भी जारी किया गया है।
यह भी सही है कि डर सभी को है चाहे माता पिता हों या स्कूल स्टाफ।लेकिन जीवन भी चलाना है।बच्चों की जिंदगी के साथ उनका भविष्य भी बनाना है।इतने दिनों की पाबंदियों ने ही सब कुछ छिन्न भिन्न करके रख दिया है।
आखिर कब तक बच्चों को घर में कैद रखा जा सकता है।उनकी शिक्षा, उनके भविष्य के अलावा स्कूल स्टाफ की जीविका का भी तो सवाल है।इतने दिनों में ही वे भूखमरी की हालत में पहुंच गये हैं।
कुल मिलाकर बच्चों के भविष्य और स्कूल स्टाफ की परेशानियों को देखते हुए इसे गलत कहना अनुचित ही होगा। बड़े बच्चों का एक भी अभिभावक आलोचना चाहे जितनी कर ले पर वो अपने पाल्य का एक वर्ष बरबाद करने के लिए कतई राजी नहीं है।यदि ऐसा होता तो बच्चे स्कूलों में पहुंच ही नहीं रहे होते।
समय और परिस्थिति के अनुसार चलना और आगे बढ़ना मजबूरी है।क्योंकि जीवन की गाड़ी अपनी गति से ही बढ़ती रहेगी।बाजारों में भी भीड़ कम नहीं है।रोजमर्रा के सारे काम लगभग चलने लगे हैं।
ऐसे में जिन बच्चों को लेकर हम डर रहे हैं।क्या वे स्कूल खुलने के पहले तक बाहर नहीं निकल रहे थे? आजकल के बच्चे वैसे भी हमसे अधिक स्मार्ट हैं।
फिर इस बात कि कोई गारंटी भी तो नहीं है कि कोरोना कब हमारा पीछा छोड़ेगा।ऐसे में बच्चों को बलि का बकरा बनाना बुद्धिमानी नहीं है।माता पिता भी बच्चों को सावधानी बरतने की हिदायतें देते हुए स्कूल भेजें।क्योंकि इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि हम जब बाहर निकल रहे हैं तो हम कोरोना वाहक बनकर परिवार को संक्रमित नहीं करेंगे।
अच्छा है कि अनावश्यक डर से बचें और सावधानी के साथ बच्चों को स्कूल भेजें।सिर्फ़ सरकार की आलोचना करने से न तो हम अपनी जरूरतों को पूरा कर पायेंगे और न ही बच्चों का भविष्य सुरक्षित रख पायेंगे।
अच्छा होगा सरकार की आलोचना करने वाले यह विचार करें कि सब कुछ पूरी तरह कब तक बंद रखा जा सकता है?क्या हम सब चार छ: माह की पूर्ण बंदी झेल पाने में सक्षम हैं?
इसलिए समय के साथ ,परिस्थिति के अनुसार ही आगे बढ़ने में बुद्धिमानी है।क्योंकि डर के आगे जीत है।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 233 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
2367.पूर्णिका
2367.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
चाय-समौसा (हास्य)
चाय-समौसा (हास्य)
दुष्यन्त 'बाबा'
खामोशियां पढ़ने का हुनर हो
खामोशियां पढ़ने का हुनर हो
Amit Pandey
नामुमकिन
नामुमकिन
Srishty Bansal
धैर्य वह सम्पत्ति है जो जितनी अधिक आपके पास होगी आप उतने ही
धैर्य वह सम्पत्ति है जो जितनी अधिक आपके पास होगी आप उतने ही
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
राष्ट्र-हितैषी के रूप में
राष्ट्र-हितैषी के रूप में
*Author प्रणय प्रभात*
सुता ये ज्येष्ठ संस्कृत की,अलंकृत भाल पे बिंदी।
सुता ये ज्येष्ठ संस्कृत की,अलंकृत भाल पे बिंदी।
Neelam Sharma
फूल
फूल
Neeraj Agarwal
माता सति की विवशता
माता सति की विवशता
SHAILESH MOHAN
ऐसे न देख पगली प्यार हो जायेगा ..
ऐसे न देख पगली प्यार हो जायेगा ..
Yash mehra
आज मानवता मृत्यु पथ पर जा रही है।
आज मानवता मृत्यु पथ पर जा रही है।
पूर्वार्थ
भिनसार हो गया
भिनसार हो गया
Satish Srijan
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
*रामपुर रजा लाइब्रेरी में सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह : एक अवलोकन*
*रामपुर रजा लाइब्रेरी में सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह : एक अवलोकन*
Ravi Prakash
भाई हो तो कृष्णा जैसा
भाई हो तो कृष्णा जैसा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
दर्द अपना संवार
दर्द अपना संवार
Dr fauzia Naseem shad
सृजन
सृजन
Rekha Drolia
नव उल्लास होरी में.....!
नव उल्लास होरी में.....!
Awadhesh Kumar Singh
"तफ्तीश"
Dr. Kishan tandon kranti
कहो तुम बात खुलकर के ,नहीं कुछ भी छुपाओ तुम !
कहो तुम बात खुलकर के ,नहीं कुछ भी छुपाओ तुम !
DrLakshman Jha Parimal
वजह ऐसी बन जाऊ
वजह ऐसी बन जाऊ
Basant Bhagawan Roy
आसमानों को छूने की चाह में निकले थे
आसमानों को छूने की चाह में निकले थे
कवि दीपक बवेजा
बेटी और प्रकृति
बेटी और प्रकृति
लक्ष्मी सिंह
हाँ मैं व्यस्त हूँ
हाँ मैं व्यस्त हूँ
Dinesh Gupta
हम रात भर यूहीं तड़पते रहे
हम रात भर यूहीं तड़पते रहे
Ram Krishan Rastogi
💐प्रेम कौतुक-288💐
💐प्रेम कौतुक-288💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
जी रहे हैं सब इस शहर में बेज़ार से
जी रहे हैं सब इस शहर में बेज़ार से
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
नेताजी का रक्तदान
नेताजी का रक्तदान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"व्यर्थ सलाह "
Yogendra Chaturwedi
करम के नांगर  ला भूत जोतय ।
करम के नांगर ला भूत जोतय ।
Lakhan Yadav
Loading...