डर के आगे जीत है
डर के आगे जीत है
“हाये… हाये… क्या हुस्न पाई है यार।”
“लगता है बनाने वाले ने बड़े ही फुरसत से बनाया है इसे।”
“एक बार… बस एक बार मिल जाए न, फिर तो मैं जन्नत भी छोड़ दूँ…।”
ऐसी बातें लगभग रोज ही कालेज के रास्ते में पड़ने वाली उसी गली से गुजरते समय कुछ आवारा लड़कों के मुँह से सीमा और उसकी सहेली मीना को सुननी पड़ती थी।
एक दिन मीना ने सीमा से कहा, “सीमा, तुम्हारे पापा पुलिस इंस्पेक्टर हैं। क्यों न इनकी करतूत हम उन्हें बता दें।”
“मीना, तुम्हें मेरे पिताजी का स्वभाव नहीं पता। जब उन्हें इस बात का पता चलेगा, तो वे इन्हें तत्काल गिरफ्तार कर लेंगे और मेरी पढ़ाई बंद करवा देंगे। ये तो 4-6 दिन बाद जेल से छूट जाएँगे, पर मेरी पढ़ाई हमेशा के लिए छूट जाएगी।”
“अरे हाँ यार। मेरे घर वाले भी पता चलते ही मेरी पढ़ाई बंद करवा देंगे। लेकिन हम ये सब कब तक बर्दाश्त करती रहेंगी ?”
“मीना, मैंने आत्मरक्षा की दृष्टि से पिछले सप्ताह ही जूडो-कराटे की क्लास ज्वाइन कर ली है, मेरी मानो तो तुम भी कर लो। जिस दिन ये नपुंसक सोच वाले लड़के हमें छूने की कोशिश करेंगे, हम उन्हें ऐसा सबक सिखाएँगे कि वे फिर कुछ करने के काबिल ही नहीं रहेंगे।”
अब दोनों सहेलियाँ एक साथ जूडो-कराटे सीख रही हैं।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़