Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Sep 2022 · 6 min read

डर आजादी का

एक बाग में एक मोर और एक मैना रहते थे। दोनों में बड़ी गहरी दोस्ती थी। दिन हो या कि रात, काम हो या कि आराम, दोनों समय निकाल हीं लेते थे मिलने के लिए।

बरसात के मौसम में उनकी दोस्ती और रंग लाती थी। बादलों के मौसम में मोर अपने रंग बिरंगे पंख फैला कर नाचने लगता तो मैना गाने लगता। मौसम में चारों तरफ आनंद हीं आनंद फैल जाता।

उन्हीं दिनों उस बाग के मालिक का बेटा घूमने आया था। मोर और मैना की जुगल बंदी देख कर भाव विभोर हो उठा। अब तो वो बच्चा यदा कदा उन दोनों को देखने बाग आ हीं जाता।

इधर मोर तो बादल का गुलाम था। वो तो बादल के आसमान में छाने पर हीं नाचता। इस कारण बच्चे को काफी दिन इंतजार करना पड़ता। परंतु मैना बच्चे को खुश करने के लिए उसकी आवाज की हू ब हू नकल करने लगता।

मैना के अपने आवाज की इस तरह नकल करते देख बच्चा खुश हो गया। वो बार बार मैना को बोलता और मैना उसकी नकल करता। इस तरह मैना बच्चे के करीब होता गया और मोर से उसकी दूरी बढ़ती चली गई।

मोर बार बार मैना को समझाने की कोशिश करता कि वो दूसरों की आवाज की नकल करना छोड़ दे, परंतु मैना के कानों पर जूं नहीं रेंगती। मोर अपने स्वभाव पर चलता रहा और मैना नकल उतरने में लगा रहा।

समय बीतने के साथ बच्चा बड़ा हो गया। उसे पढ़ने के लिए शहर से दूर जाना पड़ा। वो मैना से इतना प्यार हो गया था कि वो उसके बिना अकेले रह हीं नहीं सकता था।

बच्चा अपने पिताजी से उस मैना को भी साथ ले जाने की जिद करने लगा। आखिर कितनी बार मना करता , था तो आखिर पिता हीं। लिहाजा उसके पिताजी ने मैना को भी अपने बच्चे के साथ कर दिया, परंतु पिंजरे में डालकर।

शहर में बच्चा अकेला था। तिस पर से पढ़ाई लिखाई का बोझ। अब अपनी पढ़ाई लिखाई का ध्यान रखता कि मैना का। पिंजड़े में मैना को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता था। मैना के सुरक्षा का भी तो ध्यान रखना था।

दूसरे की नकल करने की कीमत चुकानी पड़ी मैना को। जब तक मैना को अपनी भूल का एहसास होता, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। मन मसोस कर मैना को पिंजड़े में रहना पड़ा।

कहते हैं समय हर घाव को भर देता है। मैना के चले जाने पर मोर कुछ समय के लिए तो आंसू बहाता रहा। पर आखिर कितने दिनों तक। आंसू बहाते रहने से जीवन तो नहीं चलता।

खाना खाने के लिए श्रम करना जरूरी था हीं। जीने के लिए बाहर निकलना था हीं मोर को। पापी पेट की क्षुधा सब कुछ भूलवा देती है। मोर अपने जीवन में व्यस्त हो चला। धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।

इधर मैना भी समय बदलने के साथ साथ बदलता चला गया। शुरू शुरू में जो पिंजड़े में बंधे रहना उसे भी खराब लगता था। आजादी के दिन उसे याद आते थे। मोर के साथ बिताए गए दिन याद आते थे।

बादलों के आसमान में छाने पर मोर का अपना पंख प्रकार नाचना और उसका गाना , वाह क्या लम्हे हुआ करते थे। जब पूरा आसमान हीं उन दोनों का घर हुआ करता था। ना कोई रोकने वाला, ना कोई रोकने वाला।

अब पिंजड़े की दीवार के भीतर हीं उसकी पूरी दुनिया सिमट गई थी। मैना को एहसास हो चला था कि पुराने दिन तो लौटकर आने वाले नहीं। लिहाजा क्यों नहीं पिंजड़े के जीवन को हीं अपना लिया जाए।

लिहाजा पुराने दिनों को भूलकर अब नए जीवन की अच्छाइयों पर ध्यान देने लगा। अब बिना परिश्रम के मैना को समय पर खाना मिलता। अब वो किसी भी मांसाहारी पशु के हाथों नहीं मारा जा सकता था। समय बितने के सारी पिंजड़े के भीतर अब वो काफी सुरक्षित महसूस करता था।

और इसके बदले उसे करना हीं क्या था, बस अपने मालिक के कहने पर पूंछ हिलाना और उसके दोस्तों के सामने उनकी आवाज की नकल करना। और बदले में उसे मिलता था अपने मालिक का प्यार और प्रशंसा। आखिर उसे और क्या चाहिए था।

समय मानों पंख लगाकर उड़ रहा था। देखते हीं देखते उस बच्चे की पढ़ाई पूर्ण हो गई। डिग्री हासिल करने के बाद उसे अपने घर लौटना हीं था। जब वह अपने घर लौटा तो उस मैना को भी अपने साथ लाया।

बहुत दिनों के बाद मोर ने अपने दोस्त की आवाज सुनी तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । वो तुरंत अपने मालिक के घर पहुंचा तो उसने देखा कि मैना उस बच्चे के आवाज की नकल कर उसे हंसा रहा था।

मोर छुप कर रात होने का इंतजार करने लगा ताकि वो मैना से अकेले में मिल सके। रात्रि होने पर जब मालिक का बच्चा सोने को चला गया तब मौका पाकर मोर मैना के पास पहुंच गया हाल चाल लेने।

इतने दिनों के बाद जब मैना अपने मित्र से मिला तो खुशी के मारे दोनों के आंखों से आंसू निकल पड़े। एक दूसरे का हाल चाल लेने के बाद मैना ने मोर से पूछा कि आखिर मालिक के बच्चे ने उसे हीं इस पिंजड़े में क्यों बंद कर रखा है, मोर को क्यों नहीं?

मोर ने कहा, देखो भाई मैं पहले भी कहता था , दूसरों की नकल मत करो, खास कर आदमी की तो कतई नहीं पर तुम माने कहां। मैं तो बस मौसम का गुलाम रहा। पर तुमने तो आदमी के आवाज की नकल उतरनी शुरू कर दी।

आदमी की फितरत से बिल्कुल अनजान तुम उस बच्चे के पीछे भागते हीं रहे। और ये आदमी तो है हीं ऐसे। अकेले रहने की हिम्मत नहीं और जिसके साथ भी रहता है उसी को अपना गुलाम बना लेता है।

आदमी समाज की, देश की, धर्म की , जात की, इतिहास की, परिवार की और न जाने किस किस की गुलामी पसंद करता है और दूसरों को भी ऐसे हीं जीने को बाध्य कर देता है। जो भी इसे पसंद आता है उसे अपने हिसाब से नियंत्रित करने लगता है।

कहने को तो आदमी आजादी के लिए लड़ाई करता है परंतु असल लड़ाई आजादी की नहीं, दरअसल आदमी की लड़ाई अपने ढंग से गुलामी करने और गुलामी करवाने की होती है।

देखो भाई मैना, मोर ने आगे बताया, आदमी आजादी की नहीं बल्कि खुद के द्वारा बनाई गई जंजीर में जीना चाहता है। तुमने आदमी की नकल की, आदमी ने तुम्हारे लिए भी खुद की बनाई हुई पिंजड़े की लकीर खींच दी।

खैर छोड़ो भी इन सारी बातों को। मोर ने आगे उत्साहित होकर मैना से कहा, चलो अब समय आ गया है आदमी की खींची गई लकीर को मिटाने का। चलो दोस्त, पूरा आसमान फिर से प्रतीक्षा कर रहा है तुम्हारी।

ये कहते हुए मोर ने पिंजड़े के दरवाजे को खोला और मैना को अपने साथ चलने के लिए कहा। सोचा था मैना इस स्वर्णिम अवसर को हाथ से नहीं जाने देगा। सोचा था फिर दोनों साथ साथ खुले आसमान के नीचे गा सकेंगे।

परंतु ये क्या, मोर की आशा के विपरीत मैना ने हिचकिचाते हुए पिंजड़े के दरवाजे को बंद कर दिया । जो सोचा था वैसा हुआ नहीं । एक हीं दिन में मोर ने बेइंतहां खुशी और बेइंतहां हताशा दोनों की अनुभूति कर ली। मैना ने अपने पंखों को समेटते हुए मोर को वापस लौट जाने को कहा।

मैना ने कहा, भाई इतने दिनों तक पिंजड़े में रहने के कारण अब उड़ने की आदत चली गई है। दूसरी बात ये है कि पिंजड़े में खाना पीना भी बड़े आराम से मिल जाता है। मैं तो यहीं खुश हूं भाई। तुम लौट जाओ बाग में। और हां कभी कभी आते रहना मिलने के लिए।

मन मसोसते हुए मोर बाग में लौट गया। मोर को हंसी आ रही थी। उसको साफ साफ दिखाई पड़ रहा था कि इतने दिनों तक आदमी के साथ रहने के कारण शायद मैना को भी आदमी वाला रोग लग गया है। आदमी की नकल करते करते शायद मैना की अकल भी आदमी के जैसे हीं हो गई थी।

आदमी ना तो अकेले रह हीं सकता है और ना हीं औरों को अकेले रहने देता है । मैना भी आदमी की तरह आजादी से डरने लगा है। खुले आसमान में उड़ने के लिए आखिरकार आसमानों के खतरे भी तो उठाने पड़ते हैं।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
Tag: डर, भय
235 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पांव में
पांव में
surenderpal vaidya
इतना रोई कलम
इतना रोई कलम
Dhirendra Singh
ज़िंदगी अतीत के पन्नों में गुजरती कहानी है,
ज़िंदगी अतीत के पन्नों में गुजरती कहानी है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बेजुबानों से प्रेम
बेजुबानों से प्रेम
Sonam Puneet Dubey
"राजनीति में आत्मविश्वास के साथ कही गई हर बात पत्थर पर लकीर
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
*दो नैन-नशीले नशियाये*
*दो नैन-नशीले नशियाये*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
वसंत बहार
वसंत बहार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जिंदगी में कभी उदास मत होना दोस्त, पतझड़ के बाद बारिश ज़रूर आत
जिंदगी में कभी उदास मत होना दोस्त, पतझड़ के बाद बारिश ज़रूर आत
Pushpraj devhare
थोड़ा विश्राम चाहता हू,
थोड़ा विश्राम चाहता हू,
Umender kumar
4818.*पूर्णिका*
4818.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
#नारी तू नारायणी
#नारी तू नारायणी
Radheshyam Khatik
दोषी कौन?
दोषी कौन?
Indu Singh
"मैं तारीफें झूठी-मूठी नहीं करता ll
पूर्वार्थ
सत्य पर चलना बड़ा कठिन है
सत्य पर चलना बड़ा कठिन है
Udaya Narayan Singh
"Cakhia TV - Nền tảng xem bóng đá trực tuyến hàng đầu. Truyề
Social Cakhiatv
बंधन में रहेंगे तो संवर जायेंगे
बंधन में रहेंगे तो संवर जायेंगे
Dheerja Sharma
She's a female
She's a female
Chaahat
पढो वरना अनपढ कहलाओगे
पढो वरना अनपढ कहलाओगे
Vindhya Prakash Mishra
"महापाप"
Dr. Kishan tandon kranti
अभी कहाँ आराम, परम लक्ष्य छूना अभी।
अभी कहाँ आराम, परम लक्ष्य छूना अभी।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
It All Starts With A SMILE
It All Starts With A SMILE
Natasha Stephen
इश्क़ और चाय
इश्क़ और चाय
singh kunwar sarvendra vikram
आज का इंसान खुद के दुख से नहीं
आज का इंसान खुद के दुख से नहीं
Ranjeet kumar patre
साथ बिताए कुछ लम्हे
साथ बिताए कुछ लम्हे
Chitra Bisht
मैं अलग हूँ
मैं अलग हूँ
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
वीर शिवा की धरती है ये, इसको नमन करे संसार।
वीर शिवा की धरती है ये, इसको नमन करे संसार।
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
कही हॉस्पिटलों में जीवन और मौत की जंग लड़ रहे है लोग।
कही हॉस्पिटलों में जीवन और मौत की जंग लड़ रहे है लोग।
Rj Anand Prajapati
लड़को की योग्यता पर सवाल क्यो
लड़को की योग्यता पर सवाल क्यो
भरत कुमार सोलंकी
पति-पत्नी के बीच में,
पति-पत्नी के बीच में,
sushil sarna
यादों की है कसक निराली
यादों की है कसक निराली
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
Loading...