डमरू घनाक्षरी
डमरू घनाक्षरी
सरबस इक प्रिय,
रहत सतत हिय,
मन मधु मलमल,
लगत मधुरमय।
सबकुछ प्रियतर,
मनरम मनहर,
इक तुम मनमय ,
अति शुभ प्रियमय।
रहत निकट अति,
छुवत हृदय गति,
मलयज बनकर,
हरत सकल डर।
डर मत प्रियवर,
बन उर मधुकर,
कमल नयन तुम,
मधुर चयन नम।
इक तुम मन भर,
सरस सरित घर,
हृदय मचल कर,
भर उर घर भर।
विकल बहुत मन,
सहत न इक पल,
चपल हृदयतल
रहत निकट तव।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।