डमरू घनाक्षरी
डमरू घनाक्षरी
गरज गरज कर
बरस चपल घन,
तड़प उठत अब
सकल जगत मन।
पग पग पल पल
लगत अगन यह
बढ़त चलत अब
जलत रहत मन।
सन सन सन सन
चलत पवन यह
खगदल सम अब
मचल उठत मन।
डमरू घनाक्षरी
गरज गरज कर
बरस चपल घन,
तड़प उठत अब
सकल जगत मन।
पग पग पल पल
लगत अगन यह
बढ़त चलत अब
जलत रहत मन।
सन सन सन सन
चलत पवन यह
खगदल सम अब
मचल उठत मन।