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3 Feb 2024 · 1 min read

‘डमरु घनाक्षरी’

‘घन’
उमड़-उमड़ घन, लग गरज गगन,
तब सनन-सनन, बह चपल पवन।
जलज गरज कर, कर धम-धम धम,
पसर-पसर तम, सम कजल वसन।
बरस-बरस जल ,तल-मल तल-मल,
छल-मल छल-मल,भर-भर उपवन।
छपक-छपक चल, सर-सर-सर तर,
तल पर जल चर, चल मगन-मगन।।

‘उपवन’
उपवन – उपवन, महक-चहक भर,
गमन गहन कर, जन-जन जगकर।
तन मद उपजत, रस मन बरसत,
चमकत तन सज, भर नजर उधर।
फलक-झलक पड़, पत दल तड़-झड़,
पवन चलत सर, उपवन पग धर।
उभर-उभर कर, कमल चहल कर,
पसर-पसर तल, जग-मग सरवर।।

‘पथ’
सत पथ पर चल, उस पर पग धर,
डग-मग मत कर, मन मद मत भर।
मगन सघन बन, बदन चमन बन,
अचल मचल मत , सुपथ चयन कर।
तपस वहन कर, शरद सहन कर,
मस्तक रज धर, शयन हवन पर।
तज मत डग सत ,तन-मन मत हत,
नस-नस रस भर, करकट मत चर।।

-गोदाम्बरी नेगी

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