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24 Nov 2017 · 1 min read

ठोकर…

ठोकर…….
………………..

देखता हू मै जहाँ भी
हर ठौर हर गली में
बेवफाई का नजारा
और नहीं कुछ भी , कहीं भी।
हर तरफ एक आश सा है
मन में एक विश्वास सा है
चलते मन की वादियों में
कोई तो अब खास सा है।
एक हवाँ चलने लगी है
मन को ये छलने लगी है
ठगनी बन ठगने लगी है।
किंचित मन विश्राम लेले
कोई ना हृदय से खेले
इस सफर में जिन्दगी के
अब न हो कोई झमेले।
थक गया मन बोझ ढोकर
अपनो का विश्वास खोकर
हर डगर है पथ ये कंटक
राह चलना साथ खोकर।
आया था मै जब अकेला
थी ये दुनिया घट पकेला
मान अपने जिनको थामा
आज अपनो ने ढकेला।
……… ……….
©®पं.सचिन शुक्ल

दोस्तों कोई त्रुटि हो तो भी लिखें
मन को भावे तो बतावें।
जो मै आपके भावों को पाऊँ
कुछ नया फिर मैं सुनाऊँ।
दिल्ली

Language: Hindi
214 Views
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