–ठोकर लगे तो संभल जाना —
दुनिआ का दस्तूर है
चलते को ठोकर लगाना
यहाँ संभल के चलना
यहाँ गिराने वाले बहुत हैं
कौन देख सकता है खुश किसी को
दुनिआ में फ़साने हजार हैं
चल कर देखो अपनी ख़ुशी के संग
टांग वहां अड़ाने वाला बहुत हैं
हर दर्द की दवा पास नहीं होती
फिर भी उस की ठिकाने हजार हैं
करवट जो ली मैने जरा सी
उसी वकत जगाने वाले बेशुमार हैं
इस चकाचौंध में न खो जाना
यहाँ धोखा देने वाले हजार हैं
जहाँ भी अगर रास्ता पूछोगे
ज़माने में भटकाने वाले मिले बार बार हैं।
अजीत कुमार तलवार
मेरठ