ठोकरे खाकर सम्भलता नही
ठोकरे खाता रहा पर सम्भलता नहीं
लोग कुछ भी कहे मुझको खलता नहीं ।
पाव ठहरे मेरे ठहरे ही रहे
लाख कोशिश किया पर चलता नहीं ।
अभावों से पीड़ित सूखी रोटी मिली
अधिक पाने की लालच में ठगता नहीं
कौन मौसम बना सदा पतझड रहा
कौन सा वृक्ष हूँ फूल फलता नही।
दर्द सहता रहा पर न आहे भरा
छोटी बातों मै आख मलता नहीं ।