ठोकरें लगना भी तय यारो चलो बचकर सभी।
ग़ज़ल
काफिया-अर
रदीफ़- सभी
2122…..2122……2122….212
ठोकरें लगना भी तय यारो चलो बचकर सभी।
आज तक सुधरे हैं यारो ठोकरें खाकर सभी।
गर्भ में सीपी के पलता बेशकीमत रत्न जो,
हम नहीं रखते हैं मोती सीप में जाकर सभी,
दर्द अब इंसान का इंसान को अच्छा लगे,
या खुदा ये हो गये इंसान क्यों पत्थर सभी।
देश है हम सबका तो हम देश के खातिर हैं सब,
है वतन पर मालिकाना हक तो हैं चाकर सभी।
अपनी खुशियों के लिए हम पेड़ पौधे खा गये,
आज दुनियां है दुखी ये नेमतें पाकर सभी।
दर्द गर मां बाप को जिसने दिये है सुन जरा,
पार बेशक कर नहीं पाओगे भव सागर कभी।
प्रेम के दरिया में आओ डूबकर भी देख लें,
सारे प्रेमी मिल के भर लें प्रेम की गागर सभी।
…….✍️ प्रेमी