” ठिठक गए पल “
नव गीत
देखा रुप सुहाना ,
ठिठक गये पल !!
लगता है मुस्कानें ,
करती है छल !!
आँखमिचोली तेरी ,
धूप गुनगुनी !
सर्द हवाओं सी की ,
बात अनसुनी !
माथे पर पड़ते हैं ,
अनजाने बल !!
डोर प्रीत की बांधी ,
उड़ी पतंगें !
पेंच आँख के उलझे ,
रंग बिरंगे !
लगी लालसा ऐसी ,
अब लगे न टल !!
चढ़ी बहारें काँधे ,
खुशबू पसरी !
पवन निकलती छूकर ,
खोले गठरी !
सँवर गये तुम पल को ,
पल हुए नवल !!
रंगत है बासंती ,
मन को भायी !
आँखों में जागी है ,
फिर तरुणाई !
खुशियों के झरने हैं ,
बहते कलकल !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )