ठान लूं जो
न आंक मुझे कम तर कम कर, जो चाहूं मैं वो कर जाऊं।
नही आदम जात की हवा लगी, जो जात पात में बंट जाऊं।।
माना कि मैं छोटी हूँ मुझमे, ताकत नहीं पर साहस तो है।
क्यों कर्म को कर किस्मत के भरोसे, तार तार मैं छट जाऊं।।
हम जान वक्त को जगते हैं, हम वक़्त ही रहते निकलते हैं।
हम एक साथ बन कर कुनबा, हर कठिन मार्ग पर चढ़ते हैं।।
तुम हीत मीत आराम तलब, खोजते साथ कौन निभायेगा।
हम तो बस चल देते हैं, जिसे होगी जरूरत संग चलते है।।
ये भार तो कोई भार नहीं, मैं पर्वत उठा रख सकता हूँ।
चाहूँ तो दरिया का रुख, सागर से जुदा कर सकता हूँ।।
अम्बर को झुका दूं धरती पर, यह हिम्मत के वशिभूत सदा।
ठान लू जो भी दिल मे मैं, वह कार्य सफल कर सकता हूँ।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २२/०२/२०२२)