ठहराव
गलत तो कभी नहीं था शायद
पर गलत ठहराया जाता हूँ मैं
हमेशा दुसरो को समझता रहा
पर नासमझ ठहराया जाता हूँ मैं
शिद्दत से की मोहब्बत महबूब से
पर बेवफा ठहराया जाता हूँ मैं
हर किसी को वजह से समझा
पर बेवजह ठहराया जाता हूँ मैं
उनकी नादानियों को दरकिनार किया
पर नादान ठहराया जाता हूँ मैं
निस्वार्थ भाव से सदैव सेवारत रहा
पर स्वार्थी ठहराया जाता हूँ मैं
हर जुल्म सहा उनका हँसते हुए
पर जा लिम ठहराया जाता हूँ मैं
हर डगर पर साथ चलता रहा
पर भगोड़ा ठहराया जाता हूँ
हर रिश्ते को निभाया दिल चाव से
पर बेगैरत ठहराया जाता हूँ मैं
हर किसी का यूँ ही साथ देता रहा
पर खँजरी ठहराया जाता हूँ मैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत