ठकुर सुहाती(सत्य घटना आधारित कहानी)
ठाकुर पृथ्वी सिंह जमीदार थे, उन्होंने हवेली परिसर में राधा कृष्ण का मंदिर बनवाया था। भगवान की सेवा पूजा में एक सीधे-साधे सरल स्वभाव के पंडित जी नियुक्त थे, जिन्हें पारिश्रमिक बतौर कुछ अनाज दिया जाता था। पंडित जी बड़े भाव से भगवान की सेवा पूजा नित्य नियम से किया करते थे। ठाकुर साहब भी रोज भगवान के दर्शन को मंदिर आया करते थे, लेकिन आने का कोई समय निर्धारित नहीं था। जब दरबार में ठाकुर सुहाती पूरी हो जाती, मंदिर आ जाते। पंडित जी भी अपने नियम धर्म से पूजा अर्चना में लगे रहते, यदि ठाकुर साहब पूजा अर्चना आरती के बाद आते तो पंडित जी चरणामृत प्रसाद दे दिया करते थे। भगवान की पूजन अर्चन के बीच ठाकुर साहब मंदिर आते, खांसते हुए, पंडित जी का ध्यान भंग करने की कोशिश करते, लेकिन पंडित जी बीच में कभी भी ठाकुर साहब की ओर ध्यान न देते थे। ठाकुर साहब को पंडित जी का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता था। एक दिन ठाकुर साहब पूजा आरती के बाद मंदिर आए, पंडित जी भी अपने आसन पर विराजमान थे, उन्होंने ठाकुर साहब को चरणामृत प्रसाद दिया। ठाकुर साहब पंडित जी की ओर मुखातिब होते हुए बोले, पंडित जी आप बुरा न माने तो एक बात कहूं? पंडित जी बोले एक नहीं दो कहें, बुरा मानने जैसी हमको क्या बात हो सकती है? ठाकुर साहब बोले पंडित जी हम रोज मंदिर दर्शन को आते हैं, आप हमारे ऊपर ध्यान ही नहीं देते, हम बिना चरणामृत प्रसाद के ही दर्शन कर चले जाते हैं? पंडित जी बोले ठाकुर साहब आप अगर बुरा न माने तो मैं भी कुछ कहूं? आपने मुझे भगवान की सेवा पूजा को रखा है या आपकी सेवा में? आप अगर भगवान की सेवा आरती के बाद समय पर आएंगे आप को बराबर चरणामृत प्रसाद मिलेगा भगवान की सेवा पूजा के बीच मैं आपकी सेवा नहीं कर सकूंगा, आपको अगर मेरे द्वारा भगवान की सेवा पूजा करवाना है, तो ठीक है, मुझे ठाकुर सुहाती नहीं आती, अन्यथा आपका निजी मंदिर है, आप स्वतंत्र हैं। मैं हरि इच्छा समझ कर आपका हर निर्णय सहर्ष स्वीकार करुंगा।ठाकुर को पंडित जी की बात चुभ गई,अहं को ठेस पहुंची, ठाकुर साहब ने तत्काल पुजारी बदल दिया।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी