ट्रेन संख्या १२४२४
ट्रेन संख्या १२४२४
यात्रीगण कृपया ध्यान दें गाड़ी संख्या १२४२४ राजधानी एक्सप्रेस जो अपने नियत समय ४ बजकर २० मिनट पर नई दिल्ली से चलकर कानपुर, पटना, कटिहार के रास्ते डिब्रूगढ़ तक जायेगी प्लेटर्फोर्म संख्या १६ पर लगाई जा रही है। यह अनाउंसमेंट सुनते ही हम अपने कोच संख्या के सामने खड़े हो गए ताकि ट्रेन रुके और हम अपने सीट पर आराम से बैठ सके। २४२० किमी की लम्बी यात्रा करने वाली यह ट्रेन और तकरीबन १३०० किमी मेरी यात्रा करने में सबसे बड़ी समस्या होती है सामान रखने का, क्योंकि कई लोग सिर्फ आज भी चलते तो अकेले है लेकिन दो से तीन बड़े सामान लेकर चलते है जो हम जैसो के लिए दिक्कत पैदा करता है जो सिर्फ एक व्यक्ति एक सामान के सिद्धांत पर चलते हुए हमेशा सफर करते है इन आदतों से कई बार जब आप हवाई जहाज से सफर करते हो तो आसानी हो जाती है क्योंकि वहां तो एक ही सामान अपने साथ और एक चेक-इन में ले जाने की सुविधा होती है। हम भी जल्दी से पहुंचकर अपने सामान को सीट के नीचे व्यवस्थित कर लिया और आराम से बैठकर बांकी यात्रियों का इंतज़ार करने लग गए।
ट्रेन चलने में कुछ ही समय शेष था की एक बुजुर्ग सी दिखने वाली महिला आयी और अंग्रेजी में बोलना शुरू किया की why you are sitting at my seat सुनकर मैंने पूछा की आपकी सीट कौन सी है तो उन्होंने बताया तो मैंने कहा आपकी सीट यह वाली है आप बैठ जाइये फिर उनके बैठने के लिए सीट खाली कर दी गयी लेकिन वही पुरानी घिसी-पिटी बात की मेरी नीचे वाली सीट है इसीलिए मैं खिड़की के पास ही बैठूँगी तो उसके लिए जगह बना दी गयी। फिर वापस जद्दोजहद शुरू हुई की उनका सामान कहाँ रखा जाय क्योंकि नीचे तो कोई जगह बची नहीं, फिर मैंने कहाँ आप आप इस टेबल के नीचे रख लीजिये आपका बैग भी छोटा है आ जायेगा, उन्होंने ऐसा ही किया फिर वे बैठ गयी। उम्र में काफी उम्रदराज लग रही थी तो मैंने उनसे आप कहकर सम्मान देकर ही बात किया था तो उन्होंने कुछ ऐसी बाते कह दी जो मुझे नागवार गुजरी तो मैं आराम से उनसे कहा की मेरी सीट के हिसाब से एक-एक सामान ही है और बांकी लोगों का मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ मैं सिर्फ अपने हिस्से की जिम्मेदारी को बखूबी समझता हूँ। मैंने जिम्मेदारी शब्द पर जोर देकर कहा था तो उन्हें यह बात चुभ गयी, मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है आप मेरे बारे में क्या सोचते है जबतक मैं किसी भी प्रकार की असंवैधानिक शब्द का इस्तेमाल ना कर रहा हूँ और मैंने ऐसी कोई बात भी नहीं की थी। थोड़ी देर तक ख़ामोशी भी छायी रही, कुछ लोगों को उनकी अंग्रेजी में बोलना अखर रहा था और मैं इन बातों को अनदेखा कर देता हूँ खासकर एसी कम्पार्टमेंट में खासकर लोग अंग्रेजी में बोलना पसंद करते है चाहे वह टूटी फूटी ही क्यों ना आती हो लेकिन इन महिला की अंग्रेजी काफी अच्छी थी बोलने का तरिका और शब्दों का इस्तेमाल बता रहा था कि उनकी बोलचाल की भाषा ही अंग्रेजी हो जबरदस्ती का अंग्रेजी में बोलने का प्रयास नहीं हो रहा है।
खैर कुछ देर खामोशी के बाद ट्रेन अपने नियत समय पर प्लेटफॉर्म छोड़ती हुई निकल रही थी तो उन्होंने ही वापस अंग्रेजी में ही बातचीत शुरू करने का प्रयास किया तो एक महिला और थी जो सीआईएसएफ में दिल्ली एयरपोर्ट में काम करती है ने बातचीत शुरू की और वे दोनों आपस में अंग्रेजी में बातचीत कर रही थी थोड़ी देर के बाद मुझसे मुखातिब हुई और मुझसे पूछा की आप कहाँ जा रहे है मैंने बताया तो उन्होंने अगला प्रश्न दागा कि what you do in Delhi, मैंने हिंदी में कहा की मैं एक आईटी कंसलटेंट हूँ ओवरसीज कंपनी में तो उनका अगला प्रश्न था आपको अंग्रेजी तो आती होगी मैंने कहा जी हाँ तो उनका कहना था फिर आप अंग्रेजी में बात क्यों नहीं करते है तो मेरा जवाब था जबतक जरूरत ना हो मैं हिंदी में ही बात करना पसंद करता हूँ और कोशिश करता हूँ की सामने वाला भी ऐसा ही करे तो उन्होंने फिर पूछा ऐसा क्यों तो मैंने कहा हमारे देश में कहावत है कि हर एक कोस की दुरी पर पानी का स्वाद बदल जाता है और 4 कोस पर भाषा बदल जाती है और ऐसा हुआ करता था और हमारे देश की लाखों की संख्या में बोली जाने वाली भाषा और बोली हमारी मरणासन्न है और मेरी कोशिश है कि वे किसी प्रकार बचे। तो उन्होंने पूछा की आप कौन सी बोली या भाषा बचाने के प्रयास में है मैंने कहा मैं अंगिका को बचाने और उसको समृद्ध करने के जो भी प्रयास होने चाहिए मैं करने का प्रयास कर रहा हूँ। उसके बाद उनके ढेरो सवाल अंगिका को लेकर थे जो मैंने एक ईमानदार प्रयास किये उनके सवालों के उत्तर देने का, दुर्भाग्यवश उनको कानपूर उतरना था तो हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं था। लेकिन काफी बातें हुई अंगिका को लेकर जो मैं कह सकता हूँ कि काफी महत्पूर्ण बातचीत रही। समय के साथ सफ़र बढ़ता रहा, फिर मैंने उनसे बातचीत शुरू कि तो पता चला की वे लन्दन रहती है कई दशक पहले उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की और सरकारी नौकरी भी की और शादी के बात लन्दन रहने लग गयी फिर वहां भी उन्होंने सरकारी नौकरी किया। अभी सेवानिवृत्त होकर जीवन जी रही है और हर साल भारत आती है। इस बातचीत के दौरन कई ऐसी बातों के बारे में भी बताया खासकर जो अवैध रूप से लोग पढ़ने के नाम पर विदेश जाते है और पैसा कमाने के चक्कर में कई फर्जी लोगो के हाथों फंस कर रह जाते है और सर पर काफी कर्ज चढ़ जाता है और वे ना इधर के रहते है ना उधर के फिर इनकी ज़िन्दगी पूरी तरीके से अवैध ही हो जाती है। उनके अनुसार जो भी दुनिया के किसी भी कोने में जाए वैध तरीके से जाएं और पढ़ने जा रहे है तो पढ़ने जाएं और हो सके तो शनिवार और रविवार को पार्ट टाइम जॉब करके अपने ऊपर होने वाले खर्च को कम करने की कोशिश करे और अनुभव प्राप्त करे। फिर रात के आठ बज गए तो कोच अटेंडेंट डिनर ले कर आ गया तो सबने अपना-अपना खाना खाया और महिला इंतज़ार करने लगी की कब कानपुर आएगा और मैं उतरूं…ठीक ९ बजे ४३९ किमी तय करके हमारी ट्रेन कानपुर सेंट्रल के प्लेटफार्म पर रुकी, तो मैंने जब उनका सामान लेकर नीचे उतरने में सहयता किया तो वे धन्यवाद कहकर अपनी बहन जो उन्हें लेने आने वाली थी इंतज़ार करने लगी। मैं भी खड़ा रहा और भी १० मिनट के दौरान काफी बातचीत हुई अंत में जब गाड़ी चलने को हुई तो उन्होंने कहा तुमसे मिलकर अच्छा लगा इतनी सी जिंदगी में आजकल के बच्चे इस तरह की प्रोग्रेसिव सोच नहीं रख पाते है जिस तरीके से तुम सोच पा रहे हो। तुम अच्छा कर रहे हो, उम्मीद है ऐसे ही खुलकर बात करोगे कई बार लोगों को अच्छा नहीं लगेगा लेकिन तुम अपने आपको किसी के सामने नीचा महसूस नहीं कर पाओगे, आईटी कंसल्टैंट हो, लेखक हो, कविताएं, कहानी समालोचना, लेख संस्मरण लिखते हो हमारी इस यात्रा को भी यात्रा संस्मरण के तौर पर अवश्य लिखना। मैंने जब नमस्कार में अपने हाथ जोड़े तो उन्होंने आशीर्वाद देने के लिए मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा खुश रहो और अपने बच्चे को कोशिश करना कि एक अच्छा नागरिक अवश्य बने अगर एक संवेदनशील नागरिक बना पाए तो अपने आप ही सफल हो जायेंगे, ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं, ये आज के बच्चे है हमसे कही ज्यादा अच्छी सोच रखने वाले और स्मार्ट बच्चे है। नमस्कार कर मैं ट्रेन पर वापस चढ़ चुका था और हाथ हिलाकर विदा लिया और अपनी सीट पर आकर बैठ गया। सीआईएसएफ में काम करने वाली महिला से भी बातचीत के दौरान कई ऐसी बातों का पता चला जिन्हें हम नार्मल मानकर चलते है और इन बातों का ख्याल नहीं रखते है लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है उदाहरण के तौर पर हवाई जहाज में खुला पानी नहीं पीना चाहिए। अगर किसी भी तरह की सुरक्षा को लेकर दिक्कत आये तो किनसे बात करें और कैसे बात करे ताकि उसका समाधान आसानी से निकल सके।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर भारत की रेल-यात्रा बहुत पसंद है इसमें समय तो लगता है लेकिन आप कई ऐसे लोगों से बात कर पाते है जिनसे नार्मल जीवन में शायद ही मिल पाए और कई ऐसे अनुभव आप देख या सुन पाते है जिसे आप कही और, ना सुन पाएंगे या ना ही देख पाएंगे। मेरे ख्याल से रेल-यात्रा आपको जीवन में बहुत कुछ सीखने का मौक़ा देता है। अगर आप सीखना चाहे तो लोग आपको कई ऐसे जटिल मुद्दे पर भी आपकी समझ को विकसित करने में आपकी सहायता करते है। बातों ही बातों में जीवन के कई ऐसे गूढ़ बातों को समझने में लोग अपने-अपने अनुभवों से सहायता करते है। उम्मीद है आपको मेरी यह यात्रा संस्मरण पसंद आएगी।
धन्यवाद!
शशि धर कुमार