Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Dec 2023 · 6 min read

*ट्रस्टीशिप विचार: 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक*

ट्रस्टीशिप विचार: 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक
*********************************
मेरी पहली पुस्तक ट्रस्टीशिप विचार का प्रकाशन 1982 में हुआ था। इस पुस्तक का प्रमुख आकर्षण या यूं कहिए कि पुस्तक की रचना का मुख्य आधार उस समय देश के सुविख्यात व्यक्तियों से ट्रस्टीशिप के संदर्भ में पत्र लिखकर मेरे द्वारा मांगे गए विचार थे। मैं उस समय रामपुर से बी.एससी. करने के बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में डॉक्टर भगवान दास छात्रावास के कमरा नंबर 42 में रहकर एल.एल.बी की पढ़ाई कर रहा था। मेरे पत्र के उत्तर में सौभाग्य से अनेक महानुभावों के पत्र मुझे प्राप्त हुए थे। 1982 में आजकल की तरह पत्रों को हूबहू छापने की सुविधा नहीं थी, इसलिए उनके कुछ अंशों को जो मैंने उस समय महत्वपूर्ण समझा, पुस्तक में शामिल कर लिया ।कुछ ऐसे पत्र भी थे जिसमें उस समय मुझे लगा कि पुस्तक में शामिल करने वाली बात नहीं है ,और मैंने उन्हें छोड़ दिया ।लेकिन अब जबकि प्रकाशन की नई -नई तकनीक सामने आ चुकी है और पत्रों को ज्यों का त्यों प्रकाशित करना बहुत आसान हो चुका है मुझे लगता है कि मुझे इन पत्रों को फोटो खींचकर प्रकाशित करना ही चाहिए।
जिन व्यक्तियों के ट्रस्टीशिप विचार के लिए पत्र मुझे मिले थे, अब उनमें से कोई भी जीवित नहीं है । इनके हस्ताक्षर भी आज अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। इसमें साधारण से पोस्ट कार्ड पर बड़े-बड़े सुविख्यात व्यक्तियों के पत्र शामिल हैं।

श्री मोरारजी देसाई जो भारत के प्रधानमंत्री रह चुके थे, उनका पत्र केवल 15 पैसे के पोस्ट कार्ड पर मेरे पास आया था । गुजराती-पुट में लिखा था। मैं उसे अपने अध्यापक श्री जरीवाला साहब जो विधि संकाय में रीडर थे ,उनके घर पर उनसे पढ़वाने के लिए गया था । जरीवाला साहब गुजराती जानते थे और गुजराती में मोरारजी देसाई के पत्र को पढ़कर उनको जो प्रसन्नता हुई ,मैं उस का वर्णन नहीं कर सकता।

पन्द्रह पैसे के पोस्टकार्ड पर प्रोफेसर बलराज मधोक का उत्तर आया था । यह भारतीय जनसंघ के अपने समय के शीर्ष नेता थे ।

डा.भाई महावीर का पत्र भी कोई कम नहीं था । यह जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी के नेता थे। स्वतंत्रता सेनानी और आर्य समाज के महान नेता भाई परमानंद के सुपुत्र थे। यह बाद में मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे और राज्यसभा की सदस्यता को भी सुशोभित किया।

एक पत्र पूर्वोदय प्रकाशन से जैनेंद्र कुमार जैन जी का है । जैनेंद्र कुमार जी 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किए गए थे। यह हिंदी के शीर्षस्थ उपन्यासकार, कहानीकार तथा विचारक थे।

श्री मीनू मसानी जिनका पूरा नाम एम.आर. मसानी है, यह स्वतंत्रता आंदोलन में 1 वर्ष जेल जा चुके थे । इन्होंने जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर “कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी “का गठन किया था लेकिन बाद में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के साथ मिलकर 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की । यह समाजवाद से इनका अद्भुत मोहभंग था।

दीनदयाल शोध संस्थान से श्री नानाजी देशमुख का पत्र बहुत मूल्यवान है। बाद में नाना जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

श्री एम.चेलापति राव नेशनल हेराल्ड के लंबे समय तक ख्याति प्राप्त संपादक रहे। हिंदी में उनके हस्ताक्षर दुर्लभ ही कहे जा सकते हैं।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव श्री ई.एम.एस .नंबूद्रीपाद अपने आप में कम्युनिस्ट आंदोलन का एक युग थे।

श्री सादिक अली का पत्र जब मुझे मिला था, तब वह तमिलनाडु के राज्यपाल थे। यह स्वतंत्रता सेनानी तथा पुरानी कांग्रेस के 1971 से 1973 तक अध्यक्ष रहे थे। इससे पहले 77 से 80 तक यह महाराष्ट्र के राज्यपाल थे।

नानी पालखीवाला जी को कौन नहीं जानता। बजट के बारे में उनकी टिप्पणियां सबसे ज्यादा ध्यान से सुनी जाती थीं।

श्री जगजीवन राम जी के निजी सचिव द्वारा भेजा गया उत्तर, उत्तर न होते हुए भी अपने आप में एक उत्तर है ।

आचार्य विनोबा भावे जी के निजी सचिव का पत्र भी ऐतिहासिक महत्व का है।
—————————————————
वर्तमान समय में ट्रस्टीशिप की प्रासंगिकता
—————————————————-
आशा है यह सब पत्र ट्रस्टीशिप विचार पुस्तक को और भी निखरे रूप में समझने में सहायक होंगे। ट्रस्टीशिप के संदर्भ में और समाजवाद के संदर्भ में नए-नए विचार सामने आते रहेंगे । एक तरफ कई बार हम यह सोचेंगे कि सारी व्यवस्थाएं अगर सरकार के हाथों में आ जाएं तो आदर्श समाज की रचना हो सकती है तथा निजी क्षेत्र के शोषण से मुक्ति मिल जाएगी । दूसरी और हम अनेक बार यह महसूस करेंगे कि सरकार का अत्याधिक नियंत्रण हमारे राष्ट्रीय जीवन में बहुत सी विकृतियों पैदा कर रहा है तथा सरकार के नियंत्रण को कमजोर कर के एक नए आदर्श समाज की रचना संभव है। समाज में सद्भावना, सहयोग, उदारता , दया और प्रेम के साथ सबकी भलाई का भाव चलता रहे ,इसकी उपयोगिता से कोई भी इनकार नहीं कर सकता। ट्रस्टीशिप की प्रासंगिकता इस दृष्टि से बनी रहेगी कि हम नए-नए रूपों में इसको लागू करने के बारे में सोचते रहेंगे।

सरकारवाद जिसे हम समाजवाद या साम्यवाद कह सकते हैं, अपने आप में कोई बुरी चीज नहीं है । मनुष्य को सब कुछ इसी संसार में छोड़कर 100 वर्ष का जीवन बिताने के बाद खाली हाथ संसार से जाना पड़ता है । जब केवल रहने तथा जीवन जीने के लिए ही हमें यह संसार मिला है तो इसमें स्वामित्व का कोई अर्थ नहीं रह जाता। कितना अच्छा हो अगर सारी जमीन जायदाद रुपया पैसा केवल सरकार का हो। व्यक्ति का कुछ भी नहीं हो। जितनी दुकानें हैं, व्यापार हैं, उद्योग हैं ,सब सरकार के हों। जमीन ,जायदाद, मकान सब सरकार का हो। किसी के पास कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं हो। केवल रहने के लिए सब को मकान मिलेगा। कॉलोनियां बनी होंगी। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी…. बाजारों में जिस चीज की आवश्यकता हो , लोग जाकर ले लेंगे। खरीदने और बेचने जैसी कोई अवधारणा होगी ही नहीं। नोटों की छपाई बंद हो जाएगी क्योंकि न कोई चीज खरीदी जाएगी और ना बेची जाएगी । अपने घरों में लोग खाना बना सकते हैं तथा जरूरत का सारा सामान बाजार में दुकानों से जो कि सरकारी दुकान होंगी, बिना पैसा दिए लाएंगे। इसके अलावा सार्वजनिक भोजनालय होंगे जहां चौबीस घंटे चाय नाश्ता और खाना सब प्रकार से उपलब्ध होगा। यह एक अच्छी व्यवस्था होगी। इस समय मुट्ठी भर एक प्रतिशत लोग निन्यानवे प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा किए हुए हैं । अगर सब कुछ सरकार का हो जाएगा तो केवल यह 1% लोग ही घाटे में रहेंगे । यह वह लोग हैं जिनकी कोठियों की कीमत सौ करोड़ से ज्यादा है।
दूसरी ओर ट्रस्टीशिप के आधार पर समाज का निर्माण एक बहुत ऊंचे आदर्श पर आधारित विचार है। यह कितना सुंदर विचार है कि किसी व्यक्ति के पास अरबों खरबों रुपया तो है लेकिन वह बहुत सादगी के साथ जीवन बिताता है। अपने बच्चों की शादियां सामूहिक विवाह समारोह में सादगी से संपन्न करता है । निजी जीवन में कोई तड़क-भड़क तथा ऐसा कार्य नहीं करता है जिससे समाज में देखकर दूसरों में ईर्ष्या अथवा असमानता का भाव उत्पन्न हो। ऐसे व्यक्तियों के पास अगर राजमहल भी है तो ठीक है।
दिक्कत यह है कि एक परोपकारी मनुष्य का निर्माण कैसे हो ? सरकारी व्यवस्था हो अथवा ट्रस्टीशिप की व्यवस्था हो, अगर व्यक्ति के भीतर सहृदयता नहीं है, दयालु भाव नहीं है , तो चीजें क्रियान्वित नहीं हो पाएंगी। ट्रस्टीशिप तो दूर की बात है अगर कोई ट्रस्ट पूर्वजों ने स्थापित कर भी दिया है तो बेईमान और भ्रष्ट लोग उस ट्रस्ट का सारा पैसा खा जाएंगे। जमीन जायदाद बेच देंगे और अपना घर भर लेंगे। इसी तरह सरकारी व्यवस्था है । अच्छे से अच्छा वेतन दे दिया जाए लेकिन अगर भ्रष्टाचार है, अकर्मण्यता है, आलसीपन है, कर्तव्य- विहीनता की स्थिति है तो हम पाएंगे कि दफ्तरों में कोई काम नहीं होगा। सरकारी व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त रहेंगी। तथा जनता दर-दर की ठोकरे खाने के लिए अभिशप्त रहेगी ।
खैर, इस समय ट्रस्टीशिप के संबंध में मेरा सुझाव यह है कि इनकम टैक्स की सबसे ऊंची दर केवल दस प्रतिशत रखी जाए तथा देश के सर्वाधिक धनाड्य व्यक्तियों को अपनी आमदनी का चालीस प्रतिशत देश और समाज के लिए खर्च करना अनिवार्य होना चाहिए। यह धनराशि किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो, इसके बारे में व्यापक रुप से नीतियों का निर्माण करना कोई कठिन बात नहीं होगी।

350 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

*आधा नभ में चंद्रमा, कहता मॉं का प्यार (कुंडलिया)*
*आधा नभ में चंद्रमा, कहता मॉं का प्यार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
4677.*पूर्णिका*
4677.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कुछ ख्वाहिश रही नहीं दिल में ,,,,
कुछ ख्वाहिश रही नहीं दिल में ,,,,
Ashwini sharma
सजल
सजल
seema sharma
आचार्य पंडित राम चन्द्र शुक्ल
आचार्य पंडित राम चन्द्र शुक्ल
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अ-परिभाषित जिंदगी.....!
अ-परिभाषित जिंदगी.....!
VEDANTA PATEL
58....
58....
sushil yadav
ऐसे यूं ना देख
ऐसे यूं ना देख
Shashank Mishra
"आजादी के दीवाने"
Dr. Kishan tandon kranti
बेचारा प्रताड़ित पुरुष
बेचारा प्रताड़ित पुरुष
Manju Singh
बंजारा हूं मैं...।
बंजारा हूं मैं...।
Kanchan Alok Malu
नवरात्रि का छठा दिन मां दुर्गा की छठी शक्ति मां कात्यायनी को
नवरात्रि का छठा दिन मां दुर्गा की छठी शक्ति मां कात्यायनी को
Shashi kala vyas
जिंदगी है कोई मांगा हुआ अखबार नहीं ।
जिंदगी है कोई मांगा हुआ अखबार नहीं ।
Phool gufran
सृष्टि का रहस्य
सृष्टि का रहस्य
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
चंद मुक्तक- छंद ताटंक...
चंद मुक्तक- छंद ताटंक...
डॉ.सीमा अग्रवाल
घायल
घायल
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मैं शिव हूँ
मैं शिव हूँ
Atul Mishra
धर्मरोष
धर्मरोष
PANKAJ KUMAR TOMAR
आस...
आस...
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बेटियां
बेटियां
Krishna Manshi
‘ विरोधरस ‘---9. || विरोधरस के आलम्बनों के वाचिक अनुभाव || +रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---9. || विरोधरस के आलम्बनों के वाचिक अनुभाव || +रमेशराज
कवि रमेशराज
आज के रिश्ते में पहले वाली बात नहीं रही!
आज के रिश्ते में पहले वाली बात नहीं रही!
Ajit Kumar "Karn"
ज़रूरतों  के  हैं  बस तकाज़े,
ज़रूरतों के हैं बस तकाज़े,
Dr fauzia Naseem shad
श्राद्ध पक्ष में सनातन संस्कृति का महत्व
श्राद्ध पक्ष में सनातन संस्कृति का महत्व
Sudhir srivastava
गज़ल क्या लिखूँ मैं तराना नहीं है
गज़ल क्या लिखूँ मैं तराना नहीं है
VINOD CHAUHAN
आज शाम 5 बजे से लगातार सुनिए, सियासी ज्योतिषियों और दरबारियो
आज शाम 5 बजे से लगातार सुनिए, सियासी ज्योतिषियों और दरबारियो
*प्रणय*
☄️ चयन प्रकिर्या ☄️
☄️ चयन प्रकिर्या ☄️
Dr Manju Saini
लिखना चाहूँ  अपनी बातें ,  कोई नहीं इसको पढ़ता है ! बातें कह
लिखना चाहूँ अपनी बातें , कोई नहीं इसको पढ़ता है ! बातें कह
DrLakshman Jha Parimal
*मोबाइल सी ये जिंदगी*
*मोबाइल सी ये जिंदगी*
shyamacharan kurmi
बच्चा बच्चा बने सपूत
बच्चा बच्चा बने सपूत
महेश चन्द्र त्रिपाठी
Loading...