टूट रहा है हिन्द हमारा
सुनो समय की करुण पुकार
ले डूबेगा यह अंधकार
पुनः न हो जाए माँ दासी
जागो मेरे भारतवासी
आओ मिलकर दें सहारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!
भेदभाव की साया काली
काट रही एकता की डाली
जाति-धर्म का यह टकराव
नित्य नये उपजाता घाव
रोको बहती खून की धारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!
हुआ प्रचंड द्वेष का वार
एक लहू में पड़ा दरार
शिथिल हुई समृद्धि सुहाग
हरेक सिम्त यह भीषण आग
दूर-दूर तक ओझल किनारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!
असफल होती मिली सफलता
छाती यह प्रबल दुर्बलता
धरती का रंग होता लाल
हालत नित होती बद्हाल
अपना ही घर बना है कारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!
अब मूक रहने का वक्त नहीं
बिखर न जाए देश कहीं
पतन के राहों पर सम्मान
शीघ्र बचा अपनी पहचान
कोई जतन कर,कर उजियारा
टूट रहा है हिन्द हमारा!
प्राण गया पर गई न लाज
रहा सुशोभित हिन्द का ताज
याद कर पुरखों की बलिदानी
लहू को मत बनने दे पानी
वही बग़ावत कर दोबारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!
कुमार करन “मस्ताना”