टूट जाती हैं कगारें
टूट जाती हैं कगारें
बह चुका है प्यार मेरा
इस समय की धार के संग
और हम अब तक खड़े हो
ढूंढ़ते इसकी कगारें ।
क्या यहाँ कब रूक सका है?
जीवन्त जो भी इस जगत में
उड़ ही जाते प्राण पंछी
शेष काया की दीवारें ।
तुम भले कितना समेटो
मलय कब कहाँ बँध सका है?
बाँध लो कितने भी तट तुम
टूट जाती हैं कगारें ।