टूटे पंखों से लिख दूं मैं, बना लेखनी ऐसी कविता।
गीत
प्रदत पंक्तियां-
टूटे पंखों से लिख दूं मैं,
बना लेखनी ऐसी कविता।
मात्रा भार 16/14
मधुर-मधुर हिय उठे कामना,
मन का भाव सुहावन हो।
उर में उष्मित वैरभाव का,
जल साबुन से धोवन हो।
जाति धर्म का भेद मिटाकर,
ऐसी बहे प्रेम सरिता।
टूटे पंखों से लिख दूं मैं,
बना लेखनी ऐसी कविता।
बहुत विशाल भारत भूमि है,
अति मृदुल छाती सुहानी।
पग -पग पर अति पाप बोझ है,
सुना रही अतीत कहानी।
मनभावन हो जीना सबका,
ऐसी प्रेम बहे सविता ।
टूटे पंखों से लिख दूं मैं,
बना लेखनी ऐसी कविता।
धर्म परिवर्तन का भाव घटे,
और जुल्म का ताव मिटे।
मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वार में,
अपना-अपना नाद बजे।
चैन अमन का साथ हमेशा,
जग में सदा रहे समता।
टूटे पंखों से लिख दूं मैं,
बना लिखनी ऐसी कविता।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश