!! फूल चुनने वाले भी !!
बारिश से शाय़द बच जाता मैं भीगा हूँ, टूटे छातों से
गैरों की क्या बात करूं अपनें ही खेल रहे जज़्बातों से
हृदय हुआ छ्लनी सा है, जीवन के लगते आघातों से
अपनों की याद सताती है, जब नींद न आती रातों में
जब भी कोई फंस जाता है, वक्त के उलटे पाटों में
आँखें झरना बन जाती हैं, छोटी – छोटी बातों से
उम्मीद करूं उनसे कैसे,बिकते जो नोट की पातों से
फ़रियाद करूं उनसे कैसे, मानेंगे भूत जो लातों से
पशु भी दर्द समझता है,डर लगता है आदमजातों से
फूल चुनने वाले भी, “चुन्नू” बचते रहते हैं कांटों से
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)