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27 Feb 2018 · 1 min read

टूटा हुआ दर्पण

एक टीस-सी
उभर आती है
जब अतीत की पगडंडियों
से गुजरते हुए
यादों की राख़ कुरेदता हूँ ।

तब अहसास होने लगता है
कितना स्वार्थी था मेरा अहम?

जो साहित्यिक लोक में खोया
न महसूस कर सका
तेरे हृदय की गहराई
तेरा वह मुझसे आंतरिक लगाव

मैं तो मात्र तुम्हें
रचनाओं की प्रेयसी समझता रहा
परन्तु तुम किसी प्रकाशक की भांति
मुझ रचनाकार को पूर्णत: पाना चाहती थी

आह! कितना दु:खांत था
वह विदा पूर्व तुम्हारा रुदन!

कैसे कह दी थी
तुमने अनकही सच्चाई
किन्तु व्यर्थ
सामाजिक रीतियों में लिपटी
तुम हो गई थी पराई

आज भी तेरी वही यादें
मेरे हृदय का प्रतिबिम्ब हैं
जिनके भीतर मैं निरंतर
टूटी हुई रचनाओं के दर्पण जोड़ता हूँ ।

Language: Hindi
1 Like · 312 Views
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