टूटना
अप्रत्याशित संभावनाओं
से भर जाता है
मन मुकुर पर अमिट रेख
खींच जाता है
जब कोई शीशा टूटे
टूटना कैसा भी हो
दुखी करता है
चाहे वो प्रेम में दिल टूटे
या किसी से सम्बन्ध टूटे ।
अंग प्रत्यंग टूटे तब भी
देह कष्ट पाती है
अपने से नाता टूटे तब भी
आत्मा रोती है
जाए तो अपनों से दूर तब भी
सम्पर्क टूटता है
दिल से दिल रूठ खफा होता
सब कुछ नष्ट हो जाता है ।
टूटना ही शायद प्रीति है
यही जगत की रीति है
दो प्रेमी पास आते है शायद
अन्त में बिछुड़ने के लिए
टूट जाने के लिए ही
पंच तत्वों से बनी देह को
पंच तत्वों में मिलाने के लिए
यहीं सफर है जिन्दगी का शायद ।