“टूटते एहसास”
“टूटते एहसास”
असत्य पे सत्य की जीत चाहिए ,
अधर्म पे धर्म की जीत चाहिए ।
हिंसा पे अहिंसा की जीत चाहिए,
पाप-पुण्य का लेख चाहिए ।
घर-घर में है बैठा रावण ,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।
ना रंग रूप ना भेष-भूषा,
कर सके पहचान वो आंख चाहिए ।
शोषित अब हर नर- नारी ,
दे सके सम्मान वो समाज चाहिए ।
घर-घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।
दरकते अब रिश्ते -परिवार,
ला सके विश्वास वो एहसास चाहिए ।
लुटती अबला घर कभी बाहर,
कर सके इंसाफ वो इंसान चाहिए ।
घर – घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।
भ्रष्टाचार शोषण अत्याचार का संघार,
कर सके जो सरकार चाहिए ।
गरीबी बन गई अभिषाप,
मिटा सके इस पाप को जो तलवार चाहिए ।
घर – घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।
जाति पाती रूढ़ि आडम्बर,
पाखंड खण्ड कर सके वो ज्ञान चाहिए ।
अमृषा चोरी हत्या पाप मिटाकर,
रामराज ला सके जो राम चाहिए ।
घर – घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।
“”””””””””””सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी)””””””””””””