टूटती जा रही डोर जब साँस की
हालात को समझे?????
नेता नहीं है हम, स्वयं अनुसाशन अपनाए
लो, जलाए सभी में ही हम आस की,
टूटती जा रही डोर जब साँस की।
मूंद लें आँख, पर सच छुपेगा नहीं,
गर न संभले तो कुछ भी बचेगा नहीं,
काल ये रूप विकराल लेने लगा,
हम झुके ना तो’ ये भी झुकेगा नहीं,
दूरियाँ तुम न पटो यूँ आकाश की,
टूटती जा रही डोर जब साँस की।
त्राहि-त्राहि मची हैं धरा पर अभी,
मच रही लूट जो अबखरा पर अभी,
फँस गया पार्थ सुत बस अभी व्यूह में
गिर गया वज्र लो उत्तरा पर अभी,
जिंदगी मंजिलें बन गई ताश की,
टूटती जा रही डोर जब साँस की।
हो रही सभ्यता नाश-सी देखिए,
हाथ पर हाथ हैं, बेबसी देखिए,
दो कदम खींचने का सबक लो जरा,
काल की ही स्वयं वापसी देखिए,
कोई सुन ले जरा सी ही, अरदास की,
टूटती जा रही डोर जब साँस की।
डर जरूरी है तुम इस समय से डरो,
खुद बनाओ नियम खुद ही पालन करो,
ना खुदा ने कहा, ना ही भगवान ने,
तुम बिना बात ही के स्वयं ही मरो,
ये तपस्या ही है आज विश्वास की,
टूटती जा रही डोर जब साँस की।