टूटती उम्मीदों की उम्मीद
टूटती उम्मीदों की उम्मीद
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बहुत मन कर रहा है
……एक बार तुमसे मिलने का,
बातें करने का,
………..शिकायत करने का
मीठा -मीठा सा ……. झगड़ा करने का
और …..
तुम्हारे हाथों में अपना हाथ लेकर
एक साथ लम्बी ज़िंदगी जीने का ।
……… मगर वक्त शायद ना दे इतनी मोहलत,
बदहवास हवाएं उड़ा ना दे ख्बाबों का आशियाना
………….मैं नहीं आ सकता तो आप ही आ जाओ मित्र ।
…….अभी तो मैं जिंदा हूं
मरने के बाद तो जानें कौन-कौन आएगा।
===== नज़रे प्यासी है अपनों को देखने के लिए।
कान तरस रहे हैं अपनों की आवाज सुनने के लिए।
………….सीने की आग कब से भड़क रही है तुम्हें गले लगाने के लिए,
क्या हम सचमुच नहीं मिल पाएंगे …?
क्या हम सचमुच ऐसे ही मर जाएंगे …??
नहीं
कभी नहीं …….. हमें हिम्मत नहीं हारनी
क्योंकि . .. अभी हमें मिलना है ,
लड़ना है ,
शिकायतें करनी है और फिर से एक साथ चलना है अपने काम की ओर।
माना की वक्त अभी दहशत जदा है।
जीनें की जिद्द में मौत को हराना होगा।।
==========अपनी हिम्मत और हौसले बनाएं रखें।
आपका जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश “सागर”
=======05/05/2021
9149087291