टूटता तारा
आसमान से एक तारा टूटकर,
जमीं पर गिड़ रहा था।
आसमान से बिछड़ने के गम में
वह रोते हुए जमीं पर आ रहा था।
आज हो रही थी उसकी शक्ति विलीन
इसलिए वह मध्यम-मध्यम सा लग रहा था।
धरती के तरफ आने के कारण
वह हमें अच्छा दिख रहा था
पर खो रहा था आज उसका
अस्तित्व,
इसलिए वह मन ही मन
दुख से भरा था।
आज हमेशा-हमेशा के लिए
वह मरने जो जा रहा था।
पर हम सब मुर्ख उससे देखकर
इच्छा पूर्ति की मिन्नत मांग रहे थे।
धरती पर आते देख ताली बजा रहे थे।
जो आज खुद मिट रहा था।
उससे हम खुशियाँ मांग रहे थे।
~अनामिका