टुटा हुआ तारा
दुःखों का जाल भी है,
दर्द बेमिसाल भी है,
फिर भी हँसते रहें है,
ये भी कमाल ही है!
लपटें भी उठ रहीं हैं,
ज्वाला धधक रही है,
बाहर से यूँ खड़े हैं,
अंदर से खाक भी हैं!
इम्तेहान मेरा भी था,
इम्तेहान तेरा भी था,
मैं जीत कर हारा हूँ,
तू हार कर भी जीता!
तुझे मिल गयी ख़ुशी है,
मैं बुझ गया हूँ सारा,
तू चाँद चमकता है,
मैं टुटा हुआ तारा!
-अनुपम राय’कौशिक’