Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Feb 2024 · 2 min read

टिमटिमाता समूह

जब भी चंद्र का प्रकाश खिले, सूर्य का अधिकार समाप्त होता है।
भव्य चाॅंदनी की छटा के बीच, श्वेत रंग चारों तरफ़ व्याप्त होता है।
काले गगन श्वेत तारों से सजे, ऐसा दृश्य तो बहुत न्यारा लगता है!
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

प्रकृति भी रात का पहर आते ही, शांति का चोंगा धारण करती है।
आवाजाही भी मन्द पड़ने लगती, निष्क्रियता अनावरण करती है।
अजीब-सी ख़ामोशी से भरा हुआ, हमको भूमंडल सारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

कहीं क्रमानुसार संयोजित सप्तर्षि, भव्य नभ की शोभा बढ़ाते हैं।
पंक्तियों में सजे असंख्य तारे, ऐसी सुंदरता में चार चाॅंद लगाते हैं।
जो ऊपर से नीचे की ओर निहारे, ऐसा हर एक सितारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

सारे तारों की तेज़ रोशनी में, संपूर्ण पृथ्वी का प्रतिबिंब दिखता है।
तारों का क्रम अक्षर जैसा लगे, जिनसे काव्य वो ईश्वर लिखता है।
क्रम में निकलना व ओझल होना, स्वयं ईश्वर का इशारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

जब भी आसमान को देखता हूॅं, तो तारामंडल समूह में मिलते हैं।
जन की तरह सब तारे भी, स्वतः एक सुनिश्चित व्यूह में मिलते हैं।
ऐसी पंक्ति बद्धता देखकर, आगे होने वाला चर्चा हमारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

शिव के भाल में स्थान मिला है, सारे पिंड भी चंद्रहास बन गए हैं।
चंद्रशेखर से अनुकंपा पाते ही, अटूट भक्ति व विश्वास बन गए हैं।
शीश में बैठे इस चाॅंद को देखो, ये भोलेनाथ का दुलारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

सुबह और शाम दोनों के होने में, इस विज्ञान की अहम भूमिका है।
सौर-पिंडों के उदय-अस्त में, खगोलीय ज्ञान की अहम भूमिका है।
बिन इनके सृष्टि रहे लाचार, संग में ये जीवन भी बेचारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

रात ढलते ही नकारात्मक ऊर्जा, सर्वस्व ही सक्रिय होने लगती है।
कभी जादू-टोना, कभी पाना-खोना, पाखंड में स्वयं को ठगती है।
रात का सन्नाटा और अन्धकार, बुरी शक्तियों का सहारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

चाॅंद को साक्षी मानते हुए, प्रेमिका हृदय के भाव बताने लगती है।
चांदनी रात में ही छिपी हुई बातें, प्रेमी के मुॅंह तक आने लगती है।
डोलती हुई प्रीत की नाव को, चाॅंदनी रात में ही किनारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

बदले में इश्क़ को बस्तियाॅं देकर, प्रेमी एक ख़ाली हिस्सा चुनते हैं।
इश्क़ में बेवफाई व धोखाधड़ी का, हम रोज़ नया किस्सा सुनते हैं।ये कभी महफिलों में छाया रहे, कभी जोगी का इकतारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!

4 Likes · 199 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
View all
You may also like:
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
Keshav kishor Kumar
प्रेम की नाव
प्रेम की नाव
Dr.Priya Soni Khare
जिंदगी में आपका वक्त आपका ये  भ्रम दूर करेगा  उसे आपको तकलीफ
जिंदगी में आपका वक्त आपका ये भ्रम दूर करेगा उसे आपको तकलीफ
पूर्वार्थ
मुरली की धू न...
मुरली की धू न...
पं अंजू पांडेय अश्रु
"कर्म का मर्म"
Dr. Kishan tandon kranti
हर घर में जब जले दियाली ।
हर घर में जब जले दियाली ।
Buddha Prakash
..
..
*प्रणय*
3069.*पूर्णिका*
3069.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शीर्षक - हैं और था
शीर्षक - हैं और था
Neeraj Agarwal
दिनकर तुम शांत हो
दिनकर तुम शांत हो
भरत कुमार सोलंकी
परिवार तक उनकी उपेक्षा करता है
परिवार तक उनकी उपेक्षा करता है
gurudeenverma198
मंजिल की तलाश में
मंजिल की तलाश में
Praveen Sain
मांँ
मांँ
Neelam Sharma
ले हौसले बुलंद कर्म को पूरा कर,
ले हौसले बुलंद कर्म को पूरा कर,
Anamika Tiwari 'annpurna '
*एक बल्ब घर के बाहर भी, रोज जलाना अच्छा है (हिंदी गजल)*
*एक बल्ब घर के बाहर भी, रोज जलाना अच्छा है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
महाकाल का आंगन
महाकाल का आंगन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
लंका दहन
लंका दहन
Paras Nath Jha
अपने हर
अपने हर
Dr fauzia Naseem shad
जिंदगी का एकाकीपन
जिंदगी का एकाकीपन
मनोज कर्ण
19, स्वतंत्रता दिवस
19, स्वतंत्रता दिवस
Dr .Shweta sood 'Madhu'
ईमानदार  बनना
ईमानदार बनना
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मैं बनारस का बेटा हूँ मैं गुजरात का बेटा हूँ मैं गंगा का बेट
मैं बनारस का बेटा हूँ मैं गुजरात का बेटा हूँ मैं गंगा का बेट
शेखर सिंह
हंसें और हंसाएँ
हंसें और हंसाएँ
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
देखा
देखा
sushil sarna
क्या कहूं उस नियति को
क्या कहूं उस नियति को
Sonam Puneet Dubey
गले लगा लेना
गले लगा लेना
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
जिंदगी तेरे सफर में क्या-कुछ ना रह गया
जिंदगी तेरे सफर में क्या-कुछ ना रह गया
VINOD CHAUHAN
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
कवि दीपक बवेजा
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
Rj Anand Prajapati
कमली हुई तेरे प्यार की
कमली हुई तेरे प्यार की
Swami Ganganiya
Loading...