टिमटिमाता समूह
जब भी चंद्र का प्रकाश खिले, सूर्य का अधिकार समाप्त होता है।
भव्य चाॅंदनी की छटा के बीच, श्वेत रंग चारों तरफ़ व्याप्त होता है।
काले गगन श्वेत तारों से सजे, ऐसा दृश्य तो बहुत न्यारा लगता है!
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
प्रकृति भी रात का पहर आते ही, शांति का चोंगा धारण करती है।
आवाजाही भी मन्द पड़ने लगती, निष्क्रियता अनावरण करती है।
अजीब-सी ख़ामोशी से भरा हुआ, हमको भूमंडल सारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
कहीं क्रमानुसार संयोजित सप्तर्षि, भव्य नभ की शोभा बढ़ाते हैं।
पंक्तियों में सजे असंख्य तारे, ऐसी सुंदरता में चार चाॅंद लगाते हैं।
जो ऊपर से नीचे की ओर निहारे, ऐसा हर एक सितारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
सारे तारों की तेज़ रोशनी में, संपूर्ण पृथ्वी का प्रतिबिंब दिखता है।
तारों का क्रम अक्षर जैसा लगे, जिनसे काव्य वो ईश्वर लिखता है।
क्रम में निकलना व ओझल होना, स्वयं ईश्वर का इशारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
जब भी आसमान को देखता हूॅं, तो तारामंडल समूह में मिलते हैं।
जन की तरह सब तारे भी, स्वतः एक सुनिश्चित व्यूह में मिलते हैं।
ऐसी पंक्ति बद्धता देखकर, आगे होने वाला चर्चा हमारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
शिव के भाल में स्थान मिला है, सारे पिंड भी चंद्रहास बन गए हैं।
चंद्रशेखर से अनुकंपा पाते ही, अटूट भक्ति व विश्वास बन गए हैं।
शीश में बैठे इस चाॅंद को देखो, ये भोलेनाथ का दुलारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
सुबह और शाम दोनों के होने में, इस विज्ञान की अहम भूमिका है।
सौर-पिंडों के उदय-अस्त में, खगोलीय ज्ञान की अहम भूमिका है।
बिन इनके सृष्टि रहे लाचार, संग में ये जीवन भी बेचारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
रात ढलते ही नकारात्मक ऊर्जा, सर्वस्व ही सक्रिय होने लगती है।
कभी जादू-टोना, कभी पाना-खोना, पाखंड में स्वयं को ठगती है।
रात का सन्नाटा और अन्धकार, बुरी शक्तियों का सहारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
चाॅंद को साक्षी मानते हुए, प्रेमिका हृदय के भाव बताने लगती है।
चांदनी रात में ही छिपी हुई बातें, प्रेमी के मुॅंह तक आने लगती है।
डोलती हुई प्रीत की नाव को, चाॅंदनी रात में ही किनारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!
बदले में इश्क़ को बस्तियाॅं देकर, प्रेमी एक ख़ाली हिस्सा चुनते हैं।
इश्क़ में बेवफाई व धोखाधड़ी का, हम रोज़ नया किस्सा सुनते हैं।ये कभी महफिलों में छाया रहे, कभी जोगी का इकतारा लगता है।
तारों का वो टिमटिमाता समूह, हर रात में कितना प्यारा लगता है!