टिक टिक टिक
टिक ! टिक ! टिक!
धिक! धिक ! धिक!
ठीक ! ठीक ! ठीक!
चलती जाएं घड़ी।
जब तक सोया
रात रही,
जगा जब
प्रात: हुई,
अस्ताचल के बाद
सुबह से शाम हुई।
घड़ी टांगी है
दीवाल पर
भाग रही है सुई।
सेकंड वाली सुई
कुछ ज्यादा ही
चालाक है।
जब से जिदंगी मिली थी
सबसे तेज चल रही थी
एक घंटे में 360 बार
चक्कर काट रही थी ।
मिनट वाली सुई
कुछ मद्धम थी
एक घंटे में 60 बार ही
चक्कर काट रही थी ।
और सबसे छोटी सुई
अपने भाग्य पर रो रही थी
यह घंटे की सुई थी
वह अपने कील पर रहकर
12 से चलकर 13 पर या
12 से चलकर 01 पर ही
पहुंच पा रही थी ।
घड़ी: हर घड़ी का
पल -पल का
क्षण -क्षण का
हिसाब रखती है
सही समय पर
आए आगंतुक का हम
स्वागत करते हैं
बेसमय/ गलत समय पर
आए आगंतुक को हम
वापस करते हैं या
फिर समय देकर
समय पर बुलाते हैं
कबीरदास ने कहा है:
एक घड़ी अधौ घड़ी,
अधाऊ में पुनि आध
तुलसी संगत साधु की
कटई कोटि अपराध।
घड़ी तब तक चलती रहती है
जबतक उसे बैटरी से ऊर्जा मिलती है
जिंदगी तबतक सफर में रहती है
ह्रदय जबतक धक धक करती रहती है।
******************************************@:मौलिक रचना- घनश्याम पोद्दार
मुंगेर