टाटा बिड़ला से लेकर अडानी अंबानी तक!!
मैं जब छः-सात साल का था,
स्कूल जाना शुरू किया,
अ-आ, से लेकर,क-ख–ग
लिखना और पढ़ना शुरू किया,
तब कभी कभार, बड़े बुजूर्गों की गप्पेंं सुना करता था,
और अक्सर उनके मुंह से,
टाटा बिड़ला का नाम सुना करता था,
यह बात तब किसी की तरक्की पर,
आशीर्वाद के रूप में उसके सिर पर हाथ रख कर,
या फिर, कभी किसी के दिखावे में अहंकार पर,
हास-परिहास के साथ कहने सुनने पर,
और कभी कभी तो किसी के ठाट बाट पर,
उपमा के नाम पर,
या फिर, किसी की दरिया दिली पर,
सम्मान के साथ उसके काम पर,
इनका उल्लेख हो जाया करता।
धीरे धीरे,ज्यों ज्यों, उम्र बढ़ती गई,
टाटा बिड़ला की चर्चा आम होती गई,
रोजगार के नए नए आयाम,
इनके नाम पर जुड़ते गए,
परोपकार के भी कई काम,
इनके साथ जुड़ते दिखाई दिए,
कभी कहीं घर से बाहर रात बितानी हो,
तो बिड़ला की धर्मशाला का नाम लिया जाता था,
कभी किसी को दुख बिमारी हो,
तो धर्मार्थ चिकित्सालय खोजा जाता था,
इनके उत्पादों की धमक तो आज भी कायम है,
बजाज ऑटो और टाटा नमक,
अक्सर जबां पर रहा करता है!
लेकिन अब इनके नाम यदा कदा ही लिए जाते हैं,
इनके स्थान पर अडानी अंबानी ही नजर आते हैं,
इनके कारोबार का साम्राज्य क्या किसी से कम है,
आज हर तरह के उद्योगों में इनका ही तो दखल है,
दखल इतना है कि, सरकार भी इनके दखल से हलकान है,
किन्तु जन हितों के काम में नहीं कहीं इनका नामों निशान है,
सरकारी हर संस्थानों को इन्होंने बेजार कर दिया,
बेजार इतना कि कहें बेकार ही कर दिया,
बेकार करके इनको, खुद ही खरीदते हैं,
जनता की नही परवाह, अपनी ही जेब भरते हैं,
अपने ही इशारों पर यह सरकार चला रहे हैं,
अपने ही अनुकूल सारे हालात बना रहे हैं,
इनमें वह जज्बात क्यों नजर नहीं आते,
टाटा बिड़ला के सरोकार से यह क्यों जुड़ नहीं पाते,
ये देश के लिए हैं, देश सिर्फ इनके लिए नहीं,
कमाएं ये कितना भी,ना एतराज होगा,
बस जन सरोकारों से थोडा भी लगाव होगा,
तो टाटा और बिड़ला सा इनका भी नाम होगा,
अडानी और अंबानी क्या यह काम तुमसे होगा!?